औरत जो कायनात है, उसकी न कोई बिसात है।
धरा सी मजबूत साख, फूलों सी कोमल गात है।
झुक जाती है अक्सर, अपनों की खातिर हर दफा,
इसलिए पूछ बैठते हैं आख़िर इसकी क्या औकात है।
ठान ले कुछ तो आसमान भी ज़मीन पर ले आएं,
न बोले कुछ गर तो हवाओं सी फिज़ा में गुम जाएं।
यहीं प्रकृति, सृजन हार, ब्रम्हांड की शक्ति आपार है,
मां गौरी सी सौम्या तो, वहीं चंडी सी संघारणी बेशूमार हैं।
औरत है ये जो लेती है कुछ तुमसे तो देती दुगना पार हैं,
स्वर्ग या नरक बना दे घर फकत क्या देते हो क्या ये तुम्हारे हाथ है।
एक छोटी सी ख्वाइश है, इसके लिए बस इज्ज़त और प्यार हो,
फिर देखिए 'किरन' बस स्वर्ग सा सुंदर पूरा ब्राम्हण हैं।।
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