कभी-कभी मैं भाग रही होती हूं
उस शोर से जो बंद कमरे में सुनाई दे रहा
जो फुसफुसा रहा है तो कभी चिला रहा है
आंख बंद करने पर उबलती आग सा दिखाई दे रहा
एक युद्ध सा चल रहा मेरे चारों तरफ
फिर भी मैं सोचती हूं मैं लड़ लूंगी इससे
पर शायद मैं गलत हूं .. शायद!!
आत्म-संदेह, नकारात्मकता , भयानक विचारों ने...
और भी कई बंदिशों ने मुझे जकड़ रखा है..
आईने में खुद के प्रतिबिंब में खामियां दिखाई देती हैं..
और खुद से ही घृणा और शर्म आने लगती है
चारों ओर घूम रहे शब्दों के मकड़जाल को
सुलझाने में खुद को असमर्थ पाती हूं ...
और ये सब मेरी आंखों और मुंह से निकलने की बजाय..
असंदेह , गहरी असुरक्षा को जन्म देता है....
जो स्थाई निशान तो नहीं छोड़ता पर...
मेरे सीने बड़ी आसानी से जाकर दफन हो जाता है..-
。◕‿◕。
♡Medico👩🏻⚕️
❀कभी जज़्बात लिखती हूं
तो कभी ख्यालात लिखती हूं
समझ सको तो स... read more
✨तेरी ही राह में रास्ता भटकना चाहें
"महादेव" हम तो सिर्फ आपसे मिलना चाहें
हर दुआ कुबूल होती गर तेरे दरबार में
हम भी आना चाहें तेरे "स्वर्ग से केदार" में✨-
सुनो!!
चलो आज इक खत लिखते हैं
फिर वही 90s के दौर में चलते हैं
मोहब्बत की स्याही से प्यार के दो शब्द लिखते हैं
उन शब्दों में अपने जज्बातों को बयां करते हैं
Emojis से नहीं अल्फाजों से प्यार का इज़हार करते हैं
कबूतर न सही हम खुद डाकिया बन खत पहुंचाते हैं
वो मैंने प्यार किया का सीन चलो फिर दोहराते हैं
90s के तुम भी नहीं 90s की तो मैं भी नहीं
फिर भी ना चलो हम 90s के दौर में चलते हैं
चलो आज इक खत लिखते हैं
वो इन पन्नों पर अपने दिल के सारे राज लिखते हैं
जिसे पढ़के तुम थोड़ा मंद मंद मुस्कुराओ
और तुम्हारी आंखों में इक प्यारी सी चमक आ जाए
चलो ना आज प्यार का वो खत लिखते हैं
चलो ना हम 90s के दौर में चलते हैं!!-
रोज़ वही..
पुराना ख़्वाब बुनती रहती हूं!
कोरे कागज़ पर हर मर्तबा..
तेरा ही नाम लिखती रहती हूं!
रूबरू हूं हकीकत से मैं भी..
फिर भी न जाने क्यूं..
आंसुओं के पानी में..
ख़्वाब सिलती रहती हूं!!-
वो सबकुछ भूलने लगी है..
पर आज भी उसको..
उसकी आहट मुस्कुराहट आंखों में..
एक अपनापन सा लगता है..
ख़ैर छोड़ो उसकी बातें..
आज उसका अपना बेटा ही..
सबकुछ याद होते हुए भी..
उसके साथ परायों सा व्यवहार करता है.!!-