एक दम खाली तन्हा हूँ मैं
तेरे पास होते हुए दूर हूँ मैं
आ चल अब दूर रहते हैं
शायद फिर पास रहूँ मैं..
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ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है..?
बेपनाह मोहब्बत थी मुझे तुमसे मगर
तेरे अल्फाज़ चीरते हैं अब दिल मेरा
तुझे छोड़ना मुनासिब लगता हैं अब मुझे
बजाय तुझसे नफरत करे ये दिल मेरा
कोशिशे की थी मैंने बहोत
इस साथ को निभाने की मगर
झकजौरता करता हैं अब ईमान मेरा..
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वों जो मुझे बार बार हर तबाह करता हैं
बस एक शख्स की ख़ातिर मैं तेरा वार सहता हूँ..-
शायद यही वक़्त अब रास्ते बदलने का
कुछ ख़त्म करने का कुछ शुरू करने का
बीती यादों का सिलसिला ख़त्म करने का
मसला सुलझाने का नहीं ख़त्म करने का
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एक अरसा उम्र तबाह कर दी मैने उस पर
क्या किया हैं मैंने उसके लिया वों कहता हैं
उसके सारे गम समेटने के बाद-
ज़र्रा ज़र्रा करके बिखर गया हूँ मैं ग़ालिब
अब मैं सुकून से मर जाना चाहता हूँ..
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मिल जाता सुकून महज़ सोचने भर से तो क्या बात थी
मुक़्क़मल हों जाती ग़र सबकी मोहब्बत तो क्या बात थी?
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घाव दिखते हैं सभी को मगर फ़िर भी
सभी गलती बताते औरत की है
ख़ामोश रहना हैं उसे हमेशा मगर फ़िर भी
सहने की फितरत औरत की है
आदमी कुछ भी कहे मगर फ़िर भी
घर की इज्जत बरकरार रखने की
जिम्मेदारी औरत की है..
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ताल्लुकात अच्छे रखने के लिए लहज़े में मिठास ज़रूरी हैं..
पैसों हों न हों मगर पैसों का वहम दिखाना ज़रूरी है
मुसीबत कितनी भी पड़ जाये मगर मुस्कराना ज़रूरी है..
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कर दी जाती हैं खामोश ज़ुबा अक्सर
बड़े घरों के महज़ राज दफ़नाने की ख़ातिर-