ख्याली शायर   (ख्याली शायर)
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Joined 15 April 2018


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Joined 15 April 2018

टुकड़े मे बिखरा हूँ मै
मिलते लोग हिसाब से है
मै बात करता हूँ बिखर कर
चुनते लोग हालात से है

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वो बूँद भर जो मेरा होता
समंदर की सीप उसकी होती
मैं रेगिस्तान हुआ उसके ख्वाईश के धूप मे
वरना बारिशो की हिरासत मेरे बस मे होती

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बातें तस्वीर सी कैद होती तो गजब होता
किसी की सूरत मे कैद ना होता कोई

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जिनको इत्र से इश्क़ है
वो अक्सर बाग़ लगाने से मुकरते है
ऐसे ही तो बेवफाई खिलतीं होती है
ऐसे ही तो शायर मरते है

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गिरवी रखा है मैंने रिश्ते, ज़िम्मेदारी, और हौसले को
देना है बस ब्याज और असल सोने का
सीने पर बोझ इन सबसे ज्यादा है
नाकामयाब अपनों की नज़र मे होने का

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जुर्रत हो तो तोहमत लगाए की बीमार है हम
क्या कोई कड़वा बोले हमें...
ज़ुबान से नीम है हम
जिस हसर से वाकिफ नहीं कई लोग
ऐसे जख्मो के हकीम है हम

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खाली जेब में ज़िम्मेदारी उठना भी मौत से कम नहीं
हर वक़्त ये लगता है की लोग दफ़ना रहे है

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जब दुआ कबूल नहीं हुई तो लोग रब बदल देते है
देखो ऐसा होता है..
कहने वाले ऐसा कहते नहीं
हमें इस बात का इल्म तब हुआ
जब हम नशे मे सुकून ढूंढने निकले
और नशा हुआ नहीं
फिर हमने शराब बदल दी

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जब बस्ता हल्का हुआ कांधे से
तो ज़िन्दगी भारी होने लगी
धीरे धीरे समझ आ रहा है
क्यू वो बचपना अब इस उम्र मे नागवार होने लगी
मैं देखता हूँ वो झुंड बच्चों के बेफिक्र
मगर खुद के यार मश्रूफ देखता हूँ तो तन्हाई सी होने लगी
हाँ ये सच है जब बस्ता हल्का हुआ तो
ज़िन्दगी भारी होने लगी

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मुझे शराब छोड़नी है
कोई तरीक़ा बता दो
वो जो होश मे झूठ बोलते है
वो सलीका सीखा दो
मुझे शराब छोड़नी है
कोई तरीक़ा बता दो
हाँ होता हूँ नशे मे असलियत से परे
पर असलियत क्या है कोई ये तो बता दो
अरे सुनो मेरी शराब छुड़ा दो...
ये कौन है मुझमे जो दिन भर सर झुकाता है
पैसों के लिए
शाम होते ही सवाल पूछता है की
अब सुकून का पता दो
तुम तो रोज़ देखते हो उसको वक़्त पर
सुनो दोस्त उसे कही काम पर लगा दो
मुझे शराब छोड़नी है
कोई तरीक़ा बता दो.

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