ख़्याल-ए- बेख़्याली   (Bharat 'राज़'✍)
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Joined 28 October 2019


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दुनिया एक मेला है, जहाँ हर शख़्स अकेला है।

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ख़ुद से मोहब्बत कर कर तो देखो।।

जकड़ रखा हैं ज़माने ने बेड़ियों में?
ख़ुद से बाहर निकलकर तो देखो।।

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हम से नज़र ना मिलाकर क्या करोगे


देख लो हमको एक नज़र जी भर के
हम से नज़र को हटाकर क्या करोगे


नज़र में ही नज़रबंद कर के रख लो
हम को नज़र से गिराकर क्या करोगे

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मिला है तुम को ये संसार माँ से


वो जानता है जिसने रचा संसार
कोई नहीं है जिम्मेदार माँ से

कभी राम, कभी कृष्ण बनकर
लिया प्रभू ने अवतार माँ से

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जीवन एक संभावना है।

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सरल सरस सहज सुन्दर सुकुमारी
कोमल कंचन काया केशर की क्यारी
चँचल चपल चतुर चपला चँद्रमुखी नार
मतवाली ना माने मेरी मृदुल मनुहार।।

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खुला आसमाँ
देखता रह गया
पिंजरा पंछी

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हर घर, हर तरफ़ दीपक जलाकर बस्ती रोशन कर दो,
अपने भीतर एक दीपक‌ जलाकर हस्ती रोशन कर दो।।

🙏शुभ दीपावली 🪔

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आकर बैठो कभी तो करीब तुम,
इक बदनसीब का हो नसीब तुम।।
फ़ासलों का आलम कुछ यूँ हैं
मैं मशरिक़ और मग़रीब तुम।।

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एक तन्हा सफ़र है ये ज़िन्दगी,
जान लिजिए,
तन्हाई को अपना हमसफ़र ही
मान लिजिए।।

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