मेरी खुशियों का आग़ाज़ हो,
मैं कविता,तुम अल्फ़ाज़ हो,
मेरी बेपरवाह हँसी का राज़ हो,
थकान भरे दिन की, तुम सुकून सी शाम हो,
मेरी ज़ख़्म जैसी जिंदगी के, एक तुम ही आराम हो।
सारे घाव भर दे, तुम ऐसी दवा हो,
जो घुटन से राहत दे, तुम वो हवा हो,
मेरी हर अनकही बात के एक तुम ही गवाह हो,
कुबूल हुई मेरी किसी दुआ का परिणाम हो,
मेरी ज़ख़्म जैसी जिंदगी के, एक तुम ही आराम हो।
मेरी सर्द जिंदगी में, तुम दिसंबर की धूप हो,
या यूँ कहें की तुम मेरी खुशियों का रूप हो,
शब्द नहीं बाकी अब , तुम जो भी हो, खूब हो,
मेरी हर मुस्कान का तुम दूसरा नाम हो,
मेरी ज़ख़्म जैसी जिंदगी के, एक तुम ही आराम हो।
हवाओं में सिर्फ तुम्हारा ही खुमार हो,
वो दिन मेरी कहानी का सार हो,
वक़्त बस थम जाए तभी, जब तुमसे मिलना पहली बार हो,
मेरी नज़रें तुम्हे देखें जब मेरे जीवन का विराम हो,
क्योंकी मेरी ज़ख़्म जैसी जिंदगी के, एक तुम ही आराम हो।
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