खुशी   (Khushpreet)
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Joined 10 April 2022


Joined 10 April 2022
AN HOUR AGO

अच्छा सुनो!
उजली रोशनी में चलो नई उड़ान भरते हैं
दे पंखों को हवा खुद की पहचान करते हैं 🖋️🌹

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2 HOURS AGO

कौन पास कौन दूर यहां
पास के दूर होते होते दूर के पास
जिंदगी का खेल ये सही
करता सोच में भटकाव
जो ये जान गया
लोगो को पहचान गया
वो हर पल जी गया
हर कल को पी गया🖋️

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YESTERDAY AT 6:54

सिवाय तुम्हारी खुशबू के
मैं घंटो तक बैठा रहा वहीं
जहां तुम मुझे छोड़ गई थी
और झूमता रहा ख्वाबों के ऊहा पोह में
कि जैसे तुम कभी गई ही नहीं
कि जैसे तुम अभी भी मेरे पास बैठी है
अभी भी तुम्हारा सिर मेरे कांधे पर टिका है
और मैं तेरी जुल्फों को किनारे से उठा रहा है
अभी भी तेरा हाथ मेरे हाथ में है
और मैं, मैं गुम हूं कहीं तेरी सांसों की खुशबू में
यही तो वो खुशबू है जो
जो जागने ही नहीं देती मुझे तेरे मोह पाश से
और मैं इसमें कहीं और गहरा बस डूबता चला जाता हूं
बस यही खुशबू है मेरे पास
असीम अनंत प्रेम के लिए ❣️🌹

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YESTERDAY AT 6:49

कभी कभी दिल का दरवाजा खटखटा जाते हैं
अनसुनी धुन जैसे तार कोई छेड़ जाती है
बस यही , यही वो पल है जी ले इसे
कान में धीरे से समझा जाती है ❣️🌹

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6 MAY AT 20:58

अच्छा सुनो !
मैं आज भी बैठी हूं तेरे इंतजार में समंदर किनारे
जहां तूने कहा था इस पार हमारा जहान होगा 🌹❣️

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6 MAY AT 20:36

कुछ धीरे से कान में जो फुसफुसा गई
तेरी याद की जो कमी तो उसे भी याद दिला गई
हवा यूं बदन को छू कर गुजर गई
जैसे तेरे न होना भी मुझे तेरा ही कर गई🌹❣️

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6 MAY AT 7:52

जो कभी पहुंचा ही नहीं
क्योंकि वो निकल ही नहीं पाया
उस डायरी के बीच से
नहीं लांघ पाया वो दहलीज
शर्म और मर्यादा की
नहीं अनसुना कर सका वो
ज़माने की रवायतें
और घुटकर टूट गया
मेज़ के कोने पर सबसे
आखिरी में बंद डायरी तले
समेटे खुद में ही वो पीड़ा
जिसे कभी किसी ने
सुनना ही नहीं चाहा
और दुनिया ने नाम दे दिया
त्याग का समझदारी का
काश के वो कर पाती नासमझी
काश के दिल दिमाग से ऊपर कर
सिर्फ एक पोस्ट तक की दूरी तय कर जाती
तो शायद आखिरी सांस वो खुल के
ले रही होती
बिना किसी गम और पछतावे के🖋️

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5 MAY AT 15:23

यूहीं बस बंद कर रख दी
रख दी अलमारी के उस कोने में
दबा कपड़ो की परतों के नीचे
जैसे दबा दिए हों उसमें लिखे शब्द
और उन शब्दों से जुड़े एहसास
हमेशा हमेशा के लिए
नहीं चाहती खोलना उन परतों को
ना ही पलटना उन पन्नों को
क्यों भीगू उन बिखरे आंसुओ में दुबारा
क्यों गुजरू उन पलों से दुबारा
जिन्हें निकाल छोड़ा है
दबा दिया जिन्हें स्याही से जोड़
जैसे चिपका दिया हो उन पन्नो से
फिर से नहीं बिलकुल नहीं
लिख छोड़ा है उस अंतिम पंक्ति में
हां वो जानती है सब सब कुछ
वो , वो मेरी पुरानी डायरी 🖋️

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5 MAY AT 14:18

अच्छा सुनो !
चांद के सामने यूं चांदनी आगोश में
होश में रहने की कोई वजह ही नहीं
धड़कनों को तो संभल जाने दो ज़रा
यूं तुझपे कत्ल का इल्ज़ाम गवारा नहीं ❣️🌹

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5 MAY AT 12:50

वो आए सामने कुछ यूं श्रृंगार कर
शय ही ऐसी थी मात खा गए
ना छोड़नी थी जो हाला कभी
भरी मधुशाला से उठ आ गए 🌹❣️

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