साड़ी में लिपटी वो अदभुत नारी,
माथे पे बिंदी, सिर पे पल्लू रखा करती थी
दिखती थी वो साधारण सी,
लेकिन करेजा शेरनी का वो रखती थी
जब रहते थे हम सहमे से,
अपनी गोद में आहिस्ता से सुला लेती थी
चाहे कैसे भी हो हालात,
इक आंच ना किसी पे आने देती थी
इक रोटी मांगने पे,
२ - ३ रोटियां थाली में रख देती थी
अपनो की खुशियां हो या बीमारी,
वो माँ ही तो थी जो आंसू बहा लेती थी-
हर बार बिखेर कर जोड़ देती है तू
और जब सभी टुकड़े जुड जाये
तो फिर तोड़ देती है तू-
आज बिन मौसम बुंदे बरसी
दिल ने पुछा कही ये उनके आने की आहट तो नही ।।-
लोग अक्सर पूछते है की इतना लिख कैसे लेती हो ?
कौन समझायें उन्हे लिखती मैं नहीं, मेरा दर्द है
पेन और कागज तो सिर्फ़ जरिया है-
कहने को तो वो स्टेशन था
पर मेरे लिए जन्नत था
मैं अक्सर आया करती हूँ
उन लम्हो में जिया करती हूँ
जहाँ हमने एक दूजे को अपना कहा था
कूछ पल के लिये ही सही
पर मैं खूद से मिला करती हूँ
कहने को तो वो स्टेशन था
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हवाओं को चिरता हुआ, आसमां में रंग बिखेरता हुआ
बेरंग नीले आसमां में उड़ता हुआ ,दिल एक बार बोल उठे
" काई पो छे "-
Pain feels like my heartbeats.
It will only stop when heartbeat will stop.-
हम उनसे नफरत ना कर सके, तो उन्होने हमसे कर लिया
वो हमसे मोहब्बत ना कर सके, तो हमने उनसे कर लिया-