Khushi Yadav   (ऊर्जा के किताब से...खुशी)
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Joined 18 February 2020


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16 MAR AT 22:23

बहती ब्यौरों का हिस्सा नहीं बनाना,
इन उम्मीदों के भी रोज़ नए कायदे कानून हैं..

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16 MAR AT 22:19

बुढ़ापा
जब शरीर थक रहा हो, तन बदन दर्द से कहार रहा हो,
राम नाम मन ले रहा हो, पर प्राण अटका हो,
जीने को कुछ नहीं जिया, मरने पर जीने का ख़्याल जग रहा हो,
यूं तो परिवार बनाया नहीं, भैया के परिवार का हिस्सा रहा हूँ,
अकेले आए अकेले जाएंगे, आखिर इस बे मतलबी की दुनिया में किससे दिल लगाए?
यहां तो खुद के लोगों ने संभालने से ज्यादा पैसे का मोल देखा,
अच्छा है परिवार नहीं बनाया, वरना मेरे अपनो को भी बोझ ही लगता,
आए दिन नए लोग मेरे मरने की प्रार्थना किए जाते हैं,
अब कौन उन्हें समझाए मर्जी जब तक प्रभु राम की नहीं यह शरीर छोड़ता नहीं,
व्यर्थ ही आदमी समझो मगर जीने की चाह मैने अब भी न छोड़ी,
सोचता हूं ठीक हो जाऊं और फिर इन सबसे कही दूर चला जाऊं,
या जहां से शुरू हुआ वहीं अपने मां बापू जी की तरह चले जाऊं,
जाऊंगा तो जरूर, तब मेरे पांव अपने आप बढ़ेंगे,
फिक्र जिनको भी होगी उनसे तब मैं सही से अलविदा भी नहीं कह पाऊंगा,
हां पर यह है , यह दुनिया बड़ी जालिम है, अपना मतलब खूब पसंद करती हैं...

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19 NOV 2024 AT 18:56

पुरुष पुरुषार्थ में रहा ,
उसने प्रेम चाहा उससे प्रेम मिला,
परिवार चाहा उससे परिवार मिला,
परंतु उसने सवाल हमेशा प्रेम पर उठाया,
और सदैव अपने प्रेम को विकल्प रूप दिया...
परिवार स्त्री की भी थी , स्त्री जकड़ी भी है,
पर स्त्री वो स्त्री विकल्प ही कहलाई
अपने परिवार में , अपने परिवेश में ,
अपने संस्कार में,
अंत अब स्त्री, स्त्री भी न रही..

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19 NOV 2024 AT 18:53

एक स्त्री
एक स्त्री दिखने में "स्त्री"
इस शब्द ने हमेशा उसे जकड़ा,
पैदाइश से नकारी हुई,
अस्तित्व के लिए जूझती वो,
चाहत उसकी कभी न कुछ रही,
अचानक वो स्त्री किसी की,
कहलानी चाही सिर्फ उसी से पुकारनी चाही,
और यह उसकी चाहत बढ़ी , न लड़ने वाली स्त्री ,
एक के लिए लड़ने लगी , हर नाकाम कोशिश करने लगी,
आखिर स्त्री रही वो फिर जकड़ाई,
एक बहन के रूप में, एक बेटी के रूप में,

प्रेमिका के रूप में अपनाई गई,
वहीं पत्नी रूप से धिकारी गई,
फिर कुछ इस कदर उस स्त्री को 
उसकी जात , रंग याद दिलाई गई...

वो स्त्री चहकती थी अब वो स्त्री बनाई गई...।


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25 SEP 2024 AT 22:22

अनदेखे से सड़क पर दुनिया भूले,
एक नई दिशा में आंख बंद किए लम्हे बनाते है,
गहेरे से जंगल में मगन हो जाए,
कुछ अकेले संभलते गिरते,
नई राह खोजते – खोदते, खुद की तलाश करते..

चलो कहीं दूर चले,
एक चैन की सास खोजे ,
अपनापन राहों में मिलाते, सारे राज़ सुलझाते,
गुनगुनाते कोई सुर, सड़को से भागते,
यहीं कहीं दूर खुद को छुपाए...

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8 SEP 2024 AT 4:52

काश मैं, मैं ना रहती ,काश मैं तुम बनती,
ज़िद तब मेरी देखी जाती, पुरुषों के बेस में,
बात मेरी सुनी जाती,
तुम मेरे जरूर हो जाते,
फिर अपनी जिंदगी थोड़ी रंगीन रहती,
तुम मे मैं कुछ हद लांग जाती,
स्त्री होने की सीमा समाप्त हो जाती,
हम खुश रहते, किसी अन्य की अभिलाषा ना होती..

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18 AUG 2024 AT 6:52

जिसकी मैं पूरी थी, वो मेरा होकर भी मेरा ना था,
सबको खुश रखने में वो बहुत माहिर रहा,
मेरा छोड़ वो बाकी सबका पूरा बना...!

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8 AUG 2024 AT 7:23

Life is not boring but where your
emotions are dependent on life..

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8 AUG 2024 AT 7:21

अब तो आदत सी हो गई है,
नए दिन , नए बहाने है अलग होने की उनकी चाहत है,
एक रखने की ज़िद आज भी मेरी ही है..!

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8 AUG 2024 AT 7:08

सोची थी एक साथ उम्र गुजारने की,
पर शायद यह तलब ही हानिकारक है !

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