शहरों के रास्तों सी हो गयी जिंदगी,
बेवजह ही बस आता जाता रहा...
मिजाज मेरा शोरीदा रहा उम्र भर,
फकत सबकी उलझने ही बढ़ाता रहा...
ना जाने गम था किसका मुझे,
बावजूद अपनों के साथ के घबराता रहा...
उसका मिलना था खुशकिस्मती मेरी,
और मैं उसे महज इक इत्तेफाक बताता रहा...
मै रहा इस हद तक खुशगुमा अपने लिए,
लोगों को अपनी खूबियां गिनाता रहा....।।
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