वो जो तुम्हारी फटी झोली में
प्रेम की तुरपाई कर दे....
वो जो तुम्हारे मौन की सुई
चुभने पर भी निरन्तर सिलता रहे
तुम्हारी वेदना के छिद्र....
उसे तुम अपना प्रेमी नही...
ईश्वर मानना...!! ✨❤-
कैसे मर गया वो शक्स उदासी से, अभी तो हंसते हुए मिला था....
छांव में बैठे लोगों को खबर नही थी, घना दरख्त भीतर से खोखला था...।।-
जमीं है मेरे इश्क की वो,
मेरी खुशियों का आसमान भी है...
जरा सा निहां है इश्क उससे
जरा सा सरेआम भी है...।।
मेरे पागलपन पर हंसता है,
मेरी नादानी से परेशान भी है..।।
वजह ए जिंदगी है वो मेरी
मेरी सुकून भरी शाम भी है...।।
इक सौदाई कहता है सुकून है इश्क में
मगर इसमे बड़ा नुकसान भी है..।।-
शहरों के रास्तों सी हो गयी जिंदगी,
बेवजह ही बस आता जाता रहा...
मिजाज मेरा शोरीदा रहा उम्र भर,
फकत सबकी उलझने ही बढ़ाता रहा...
ना जाने गम था किसका मुझे,
बावजूद अपनों के साथ के घबराता रहा...
उसका मिलना था खुशकिस्मती मेरी,
और मैं उसे महज इक इत्तेफाक बताता रहा...
मै रहा इस हद तक खुशगुमा अपने लिए,
लोगों को अपनी खूबियां गिनाता रहा....।।-
मेरे हालातों पर मेरा दस्तरस नही है...
अब मर भी जाऊं तो कोई अजब नही है...।।
हो सकता है ये उरूज हो बदनसीबी की...
मगर मालूम है ये मेरी वहशत नही है...।।
सरबसर है जहन खुदकुशी के ख्यालों से...
कैसे कह दूं ये मायूसी की बरकत नही है...।।
इक दोस्त परेशान है मुझे इस हाल में देखकर..
सोचकर हंसती हूं कि यारों की फितरत यही है...।।-
फ़कत इसी आस पर तमाम उम्र गुजारी गयी...
आखिर में मर ही जाते हैं...बारहा मरने वाले..।।-
चुभे हैं गुल पैरों में जब से.... कांटों पर भी बेखौफ चलता हूं....
गिरा हूं खुद की नजरों में जब से....घर से जरा कम निकलता हूं...।।-
मेरी आंखों में तुम्हारे ख्वाब जंचते है ऐसे...
बंधे हो मन्नत के धागे मंदिरों में जैसै...।।-
रहता है शक्स कोई मुझमें रुठा हुआ सा...
हां! मैं हूँ शजर खुशियों का मगर....सूखा हुआ सा...।।-