अब खामोश हो गईं हूं,
कहीं खो गईं हूं ,
ऊंचाइयों से डरने लगी हूं,
शायद में अब बड़ी होने लगी हूं।।
मंजिल को पाने की तलाश में ,
खुद की तलाश करने लगी हूं ,
ख्वाइशों को मार कर आगे बढ़ने लगी हूं ,
शायद में अब बड़ी होने लगी हूं ।।
छोटी छोटी खुशियों में खुश होने वाली में,
अब बड़े बड़े दुखों में भी मुस्कुराने लगी हूं,
कुछ टूटने पर मायूस होने वाली में,
खुद टूट के बिखरने के बाद भी, शांत रहने लगी हूं
में शायद बड़ी होने लगी हूं।।
में शायद बड़ी होने लगी हूं।।
~खुशी सिंह
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