उसे याद करते हुए......
कि तेरी यादों में तेरा जिक्र आया,
उस दिन मैं तुझसे तुझ तक आया।।
कभी दिल को चुभने वाली बातें करता तेरा लहजा,
तो कभी बेहिसाब इश्क करता तू नजर आया।
तभी खुदको रोकता हुआ मैं...
वापस खुदसे खुद तक आया।।
हां! ये हर बार का हो गया है मेरा...
तुझसे तुझ तक जाना, खुदसे खुद तक आना।।
हां, शायद!
सिलसिला ये जारी रहेगा अब...
क्यूंकि, उन यादों की ये किताब मैं,
तुझे देना भूल आया।।-
यूं! उसे पहली दफा देखने की चाह बहुत है ,
वहीं फिर कभी ना मिलने का डर सताया बहुत है।।
मेरे शहर से उसका आशियाना मीलों दूर है बना,
हां! पलभर में उससे मिलना मुश्किल बहुत है।।
मुकमब्बल होगी शायद ही कभी ये दुआ मेरी,
सबकुछ जानकर भी.......
ये कमबख्त आँखें खुदा से फरियाद करती बहुत है।।-
रहा कुछ ऐसा इश्क के शहर में सफर मेरा
कि...
ना मुलाकात, ना कभी देखा उन्हें।
बस उनके लहजे के चलते चाहा उन्हें।।
यूं! मुकमब्बल ना हो सकेगा इश्क मेरा।
ये जानकर भी, दिल में छुपाया उन्हें।।
हां! कत्ल-ए-आम तो होना ही था, उस दिन मेरा।
जब हाल-ए-दिल, मैंने खुद जाना था मेरा।।
लेकिन...
इतना आसान कहां, चाहत-ए-इश्क मिल पाना।
सुबह की ओस के जैसे, आंखों का नम हो जाना।।
हां! मुश्किल रहा...
यूं खुद ही, खुदको समझा पाना।
उन यादों के गट्ठल के साथ, बस चलते जाना।।
कुछ ऐसा था इस सफर में, क़िरदार-ए-हिस्सा मेरा।
बस इतना सा था, दास्तान-ए-किस्सा मेरा।।-
I don't care,
What sort of mentality whom has.
I know,
I'm the special one, the way I'm.-
I hope....
One day we'll meet ,
that day I'll sit on a bench
and you'll come up sit my beside.
Maybe....
We'll be lose in each other ,
while sharing our past memories ,
which relate to only us.
I wish....
that time everything will stop forever,
and never start again.-
ये उस दिन की बात है...
उस बंद कमरे में खुदको ,
एक कोने में बैठा पाया था मैंने।।
घंटों बाद...
उस कमरे में मौजूद किताबों को,
खुदके सबसे नज़दीक पाया था मैंने।।
फिर भी !
उलझनें इतनी थीं कि थक कर...
सब छोड़ने का फैसला ले ही लिया था,
तभी घर के किसी कोने से...
खुदको बेटा कहते पापा को सुना था मैंने।।-
लकीरें बदलती रहीं
हार कर भी वो संभलती रही,
मुकद्दर की ना थी उसको खबर
बस मंजिल की ओर बड़ती रही....
अनजाने में सही खुदको खुदके करीब करती रही।।-
वक्त ने बदला है,
या मैं ख़ुदमें उलझी हूं।।
दुनियां के मसलों में,
न जाने कहां फंसी हूं।।
ख़ुदको याद कर ....
मैं आज फिर हंसी हूं।।-
"मुकद्दर" की है बात सारी,
किस्मत का लिखा मार जाता है।।
कुछ सजदों में मर जाते हैं,
तो किसीको सजदा मार जाता है।।
एक हम ही तो हैं ...
जो तुझपे पूरे के पूरे मरते हैं,
वरना....
किसीको तेरी आंखें,
तो किसीको लहजा मार जाता है।।-
अच्छा लगने लगा है,
यूं....
अकेले में हंसना खुदसे बातें करना
खुदसे खुद रूठकर खुदको मनाना,
अब अच्छा लगने लगा है।।
हां!
खुदकी फिक्र करना सीख लिया है
दरअसल....
खुदके लिए जीना आ गया है।।
अच्छा लगने लगा है...
मुझे अपना वो हर लहजा,
जो सिर्फ मेरी मर्जी से होता है
हां! मुझे खुदसे प्यार हो गया है।।-