कभी कभी सत्य बहुत ही दुर्बल हो जाता है, क्योंकि सत्य को सत्य समझने में लोग झूठ की चादर ओढ़ कर अपने आप को समुचित कर, अवसाद के उस गहरे समुंद्र में डूबा लेते है जहां से वे निकलना ही नहीं चाहते
नित प्रतिदिन... मेरे हृदय में एक महाभारत युद्ध सा चलता है कभी टूटकर, बिखरता तो,कभी कठनाईयो के रक्त से नहाता हूं कभी अभिमन्यु सा द्वन्ध करता कभी अश्रु अर्जुन सा बहाता हूं कभी प्रतिज्ञाओं में बंधा भीष्म सा कभी शकुनी चाल में फसता हूं कभी श्रापित राधे सा तो, कभी कुंतये सा गुस्साता हूं ..rovinhud@up23