पहली मुलाकात
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अर्धनग्न हो सहला रही हूं खुद ही खुद को
याद में तेरी भींग रही कबसे साड़ी मेरी
आते क्यों नहीं प्यास बुझाने अब मेरी
भूल गए क्या, अधूरी है ख्वाहिश अभी मेरी ।-
सर्द मौसम में गर्माहट की जरूरत है
तंग कपड़ों में समाने की मशक्कत हैं
नग्न हो जाऊ गर कमरे के अन्दर....
तो इस कमरे में बस आपकी जरूरत हैं।-
बहक गई हूं, थोड़ा सा जी लेने दो
बाहों में तुम्हारी मुझे मचल लेने दो
सख्त हो चुके हैं दोनों उरोजो को मेरे
होठों से अपने जरा मसल लेने दो।-
तन को छोड़ मन को निर्मल बनाइए
मोह, माया से भरी इस नगरी में
कहीं ख़ुद को मत खो आइए।-
चंचल
इसके बहकावे में ना आओ
सारे रिश्ते हैं यहां झूठे
रिश्तों के छलावो में ना आओ ।
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महसूस करना चाहती हूं
फिर से तेरी छुअन को ।
आहे भरना चाहती हूं
बाहों में तेरे सिमटकर ,
अब और रहा नहीं जाता
तेरी यादों के सहारे,
आ कर चूम ले बदन पूरा
मैं फिर से जीना चाहती हूं
उस हसीन पल को।
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