व्यथा
मेरे पसीने की महक
उस मिट्टी के कण में रहती है,
जिसमें उगे फलों से तुम पकवान बनाते हो।
मेरे श्रम की अग्नि
उस लकड़ी में जलती है,
जिससे तुम अपने प्रिय की चिता जलाते हो।
मैं जागता हूं दिन रात,
और तुम सैर–सपाटों के गुण गाते हो।।-
Got one life, want to do it all :)
Like Augustus, my bigg... read more
प्रतिबिंब है मानवों का,
यह सही गलत का मेल,
है अस्तित्व दानवों का।
धूप न स्वीकार कभी,
कभी सूर्यदेव को पूजते हैं,
मौसम जैसा रंग दिखा दे,
वही अपनी श्वासों में भरते हैं।
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Lovelorn
Kissing my cheeks - the lustful air,
Oh! Entomb my desire of entwining in your crispy hair.
Jerks in my body, while I enmesh in your shade.
Let me live or let me fade!
Endeavouring your tender voice, washing the murk away.
Oh! Let me rest in your soul, let me pave my way.
Drifting us apart is the world made of flesh and blood,
Dreaming of you, my love, I became a forlorn bud!-
यह बेबसी की मार है, या डर से हार है?!
कि संवेदनाएं तो हैं, पर कुछ कहने से भी है डरते..!
तिमिर सा सन्नाटा भी चुभता है अब,
ये न खुद के स्वप्नों के लिए संवरते, कैद है जिंदगी मानो, पल पल हैं मरते..!
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पाप करो यही दंड का मूल है
तुम्हारा दुर्व्यवहार सच है शूल है
इन सलमे सितारों के बीच,
तुम्हारा दिखावा चमकता है पर धूल है-