रात भर देखता हूँ खुला आसमां और आसमां के वो सितारे,
कहता है चाँद अक्सर तू अकेला नहीं बहुत है तेरे जैसे बिचारे...-
हाँ थोड़ा पागल, दीवाना, सरफिरा एक आशिक़ हूँ मैं।।... read more
अब मै यें बात तुम्हे कैसे बताऊ की हीर-रांझा की कहानी क्या है,
जिस्म पर मर मिटने वाले क्या जाने मोहब्बत रूहानी क्या है..?-
खुद पर लिखू भी तो क्या लिखू,
जो गुजरी अकेले वो दिन लिखू,
या तन्हा-अकेला ये रात लिखू,
झूठ कहूँ या सच पूरी बात लिखू।
तेरे झूठे वादे या झूठा साथ लिखू,
मेरे रक़ीब के साथ तेरा हाथ लिखू,
मैं कितना रोया था देख वो मंजर,
क्या फेरे वो सातों के सात लिखू।
मैं खुदकी खराब तकदीर लिखू,
या ख़ुदको फकत फ़क़ीर लिखू,
लिखकर ही कर दूँ बया हालात,
या रक़ीब की दरो-दहलीज़ लिखू।
तेरी बेवफ़ाई या ख़ुदको नादान लिखू,
तुझको महल ख़ुदको शमशान लिखू,
अब लग रहा है मैं खुद से भी हारा हूँ,
सोचता हूँ रक़ीब को आसमान लिखू।
यहाँ खुद को ही अब मैं बेजान लिखू,
या फिर तुझको अपनी मैं जान लिखू,
क्या तेरे दिए वो सारे गहरे ज़ख्म लिखू,
या फिर उन ज़ख्मो का आराम लिखू।
खुद पर लिखू भी तो क्या लिखू,
जो गुजरी अकेले वो दिन लिखू,
या तन्हा-अकेला ये रात लिखू,
झूठ कहूँ या सच पूरी बात लिखू।.-
एक खत छोड़ रहा हूँ पढ़ना जरूर !
एक खत छोड़ रहा हूँ पढ़ना जरूर,
लिखें जज्बातों को समझना जरूर,
उस खत का कोई जबाब ना देना तुम,
बस बैठ कर कहीं थोड़ा सोचना जरूर।
लिखा हूँ उस उसमें मैं हालात अपनी,
तुम्हें याद है वो पहली मलाकात अपनी,
कैसे बिन कुछ सोचे छोड़ गई तुम मुझे,
भूल गई तुम हर वादे और हर बात अपनी।
ख़ैर छोड़ो मैं तो तुम्हें गलत नहीं समझता हूँ,
शायद कोई मज़बूरी होंगी यहीं समझता हूँ,
मगर एक बार मुझसे कह कर तो देखती,
तुमने मुझे अपना नहीं "समझा" यहीं समझता हूँ।
तुम्हें बेवफ़ा नहीं लिखा मैंने कभी तुम जानती हो,
पर तुमने वफ़ा नहीं की साथ मेरे तुम जानती हो,
कोई शिकवा, कोई शिकायत नहीं है मुझे तुमसे,
मगर असर क्या हुआ है मुझपे ये तो तुम जानती हो।
बस इन्ही सब बातों को तो समेट रहा हूँ,
झूठे वादे और झूठे कसमो को देख रहा हूँ,
तेरी अच्छाईयो को महफूज़ रख कर मैंने,
तेरी बुराइयों को खुद से दूर फेंक रहा हूँ।
एक खत छोड़ रहा हूँ पढ़ना जरूर,
लिखें जज्बातों को समझना जरूर,
उस खत का कोई जबाब ना देना तुम,
बस बैठ कर कहीं थोड़ा सोचना जरूर।-
काश कोई शख्स मुझको सच्चा मिलता,
समझता मुझको मुझसे अच्छा मिलता,
बचपना बीत गया देखते- देखते ही मेरा,
पर देखूं आईने में तो है वो बच्चा मिलता..
काश मोहब्बत सीरत भी देखता,
चेहरा नहीं वो भीतर भी देखता,
दो बार लुटा हूँ इश्क़ में मैं अपने,
काश कोई मुझको मुझसा देखता..
इतना रोया हूँ की अश्कों में ही बह गई हो तुम,
बस एक ग़ुमनाम कहानी बनकर रह गई हो तुम,
मेरा वजूद अब मुझे तुम्हारा होने तो नहीं देगा,
मगर हमेशा के लिये मेरे रूह में रह गई हो तुम..
और अब इश्क़ मुझको फिर नहीं हो सकता,
अब किसी और के ख़्यालो में नहीं ख़ो सकता,
ज़िंदगी कर लेंगे बसर हम तेरी यादों के सहारे,
हममें हिम्मत नहीं बची अब ये दिल नहीं रों सकता..
ख़ैर जाओ अब तुम बिलकुल आज़ाद हो,
मेरी दुआ है मुक़्क़मल तेरी हर फ़रियाद हो,
तुझको भी कोई बिलकुल तुझ जैसा मिले,
फिर तुम्हारी ज़हन में बस और बस मेरा नाम हो..
इश्क़ अधूरा रहा इसका मलाल रहेगा,
पर हर एक सांस पर तेरा नाम रहेगा,
और जो रुक जाएगी साँसे तो चौकना मत,
वादा रहा मेरा रूह तेरे आस पास रहेगा..
चलो अब ख़त्म ये बात कर रहा हूँ,
इसमें लिखा हर शब्द तेरे नाम कर रहा हूँ,
कोशिश है की तुम-तक पहुचे आवाज़ मेरी,
मैं चीख-चीख कर बसर ये रात कर रहा हूँ।
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समुन्दर
था बेहद गहरा तेरे आँखों का समुन्दर,
उसका हर कतरा जैसे खारा समुन्दर,
मैं उससे बचकर निकल तो जाता भी,
मगर फिर मुझको था पुकारा समुन्दर,
लहरों ने मुझे लिया तो था आगोश में,
आँख ख़ुली तो देखा किनारा समुन्दर,
और हमने आवाज़े भी लगाई थी बहुत,
ना दिया एक कस्ती का सहारा समुन्दर,
अभाष मौत का हो रहा था मुझको भी,
जो भी हो पर था बहुत प्यारा समुन्दर,
और अंत यहीं की हम डूबे तो लेकिन,
फिर न देखा कभी मैंने दोबारा समुन्दर,
था बेहद गहरा तेरे आँखों का समुन्दर,
उसका हर कतरा जैसे खारा समुन्दर।
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ज़िन्दगी भले पूरी जी लो कुछ तो अधूरा रहता है,
कोई रास्ता सीधा नहीं कही न कही मुड़ा रहता है,
वो चाहे कितनी भी करले अच्छाई अच्छे से मगर,
उसके अच्छाईयो मे भी क्यों वो बना बुरा रहता है।
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इश्क़ हार कर भी बना मै दीवाना रहा,
लगा उनके गलियों मे आना जाना रहा,
खुदको बदलने की कोशिश की मगर,
दिल मेरा शायराना था शायराना रहा।
ख़ुशी-
किसको सुनाऊ यार मै हाल-ए-दिल अपना,
काली सी रात और खुली का आँखों का सपना,
आजमाया नहीं बस जरुरत पर माँगा साथ मैंने,
गिरगिट से भी तेज रंग दिखाया फिर हर अपना।
ख़ुशी-
मेरे कहने के बाद भी कहता है वो शख्श अपना कहना,
बातो को रखता है सहेज़ कर जैसे रखता है कोई गेहना,
महफ़िलो मे पूछता है की बता यार तेरा दर्द क्या है,
फिर कहता है करण की सिख लिया है मैंने दर्द सहना।
ख़ुशी-