Khushi   (Unsung_लेखक)
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Joined 2 July 2020


Joined 2 July 2020
21 FEB 2023 AT 3:02

तुम्हारी अर्धांगिनी

इन समाज के रीति रिवाजों से जुड़ना है मुझे,
और कुछ नही जनाब , तुम्हारी अर्धांगिनी बनना है मुझे !
श्रंगार में अब ज्यादा समय लग जाये,
माथे पर जब मेरे कुमकुम सज जाये,
सतरंगो मे लाल रंग ही मनभाये ,
और ज्यादा तो नही जनाब,
बस तेरे नाम से मेरा नाम सदा के लिए जुड़ जाये !
प्रेम को मेरे गठबंधन से जोड़ना है मुझे,
और कुछ नही जनाब, तुम्हारी अर्धांगिनी बनाना है मुझे !

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26 MAY 2022 AT 12:31

कलम,

मेरे सिले होठों की जुबा ये कलम है,
जो मै कह न सकी, उसका परिणाम ये कलम है,
जज्बातो को बुनती मै जिन शब्दो मे,
उन्हे पन्नो पर उकेरती ये वो कलम है!
खालीपन जब पकड़े हाथ मेरा,
अपने जब छोड़े साथ मेरा,
फिर बेवक्त मुझे गले लगाती,
ये मेरी प्रिय कलम है...!



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24 MAY 2022 AT 15:57

श्रृंगार के नाम पर मेरे पास आंसू और एक झूठी मुस्कान है,
ये आंसू मेरी पलको को भीगो के थोड़ा चमका देते है,
मेरे गालो पर बहते हुए हल्की लालीमा छोड़ जाते है,
मेरे मन में उमड़ती दुःखो की सुनामी,
मेरे होठों की मुस्कान छुपा जाती है,
मै हैरान हूँ, लेकिन दुनिया को मेरी यही सुंदरता बहुत भाती है..!


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22 MAY 2022 AT 2:10

विश्वास की जो डोर क्या टूटी
फिर मेरी अनकही बात भी गूंजी
समय तो गुजर गया लेकिन
फिर क्यो आँखो की नमी न सूखी
यादो के जो पन्ने पलटे ,
फिर एक हवा का झोंका आया,
पहला पन्ना देख मेरा दिल
न जाने क्यो ही भर आया,
खुशियो से भरा वो पन्ना,
अब थोड़ा गल सा गया है
महसूस हुआ अब मुझको,
वक्त थोड़ा बदल सा गया है.....













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2 FEB 2022 AT 13:24

कुछ अनकहे शब्द,
आँखो के रस्ते बह जाते हैं
और कुछ मन के किसी कोने मे रह जाते है,
अक्सर रात्रि के सन्नाटे में,
इन शब्दो की आवाज गूंजती है,
मेरे मीठे से सपनो को,
क्यों ये हर बार तोड़ती है,
मेरा मन भी इन आवाजों को सुनता है,
दिन ढलते ही, न जाने क्यो विचलित हो उठता है,
इस विचलित मन को समझाना चाहती हूँ
इन अनकहे शब्दों को अब, कहना मै चाहती हूँ,
लफजो में बयां करु भी तो कैसे?
नम आँखो की, इन्हें अब आदत सी हो गयी है,
खैर , इन शब्दो को अब अनकहा ही रहने देते हैं,
आँखो के रस्ते इन्हें बहने ही देते है..!





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14 JUL 2021 AT 19:03

तुम याद नही करते जब,
मै गुमसुम सी हो जाती हूँ,
हर बार तुम्हारी तस्वीर देख,
अपने दिल को अब बहलाती हूँ,
व्याकुल सा ये मन मेरा,
जो नाम तुम्हारा जपता है,
चंचलता से भरा था जो,
अब सब्र की राह पर चलता है,
मन्नतो के धागो मे,
बांध रही हूँ तुमको मै,
प्रेम के इस मंदिर मे,
सजा रही हूँ तुमको मै,
छोड़ न देना साथ मेरा,
इस बात से अब घबराती हूँ,
तुम याद नही करते जब,
मै गुमसुम सी हो जाती हूं!

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13 JUL 2021 AT 23:09

कमरे के एक कोने में,
वो गुमसुम अकेली बैठी है,
कोई बात जो उसके जहन में है,
जो किसी से न अब कहती है,
मन मे भरी वो अतह पीड़़ा,
उसके आँखो से बहती है,
कुछ दर्द है उसकी बोली मे,
क्या गम है उसकी झोली मे,
उत्साह से भरी थी कल तक जो,
आज खोई खोई सी रहती है,
कमरे के एक कोने मे,
वो गुमसुम अकेली बैठी है!

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30 JUN 2021 AT 4:16

कैद कर ले मुझे इन आँखो मे.
कही नजरो से ओझल न हो जाऊं,
इस क्रुर समाज के कारण,
कही तुमसे दूर न हो जाऊ,
थाम लो अब हाथ मेरा,
मुझे मीलों दूर चलना है,
जहाँ साथ छूटे तुम्हारा,
समझ लो सांसो का रुकना है,
मेरे तो प्रेम के मंदिर मे,
अब पूजा तुम्हारी होती है,
दर्पण मे खुद को निहारू,
तो सूरत तुम्हारी होती है,
इस दिखावे की दुनिया मे,
कही मै खो न जाऊं,
कैद कर ले मुझे इन आँखो मे,
कही नजरो से ओझल हो न जाऊं !

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15 JUN 2021 AT 13:04

इश्क- ए-इजहार से वो कतराते है,
बातो मे अपनी हमें उलझाते है,
बोली में अपनी कड़वाहट घोल,
मोहब्बत को हमारी आजमाते हैं !

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6 JUN 2021 AT 3:02

कोरोना महामारी का वो काल था,
लोगो के चहरो पर लगा एक नकाब था,
जिस पल उनकी नजरों का दीदार हुआ,
वो दिन एक सर्द भरा इतवार था !
सादगी भरी पोशाक थी उनकी,
मुख पर हल्की मुस्कान थी उनकी,
कपकपाते हाथों को जो थामा उन्होने,
इश्क से पहली मुलाकात थी उनकी ,
देख उन्हे मैं सुध बुध खो गई,
गले लग उनसे मैं बहुत रो गई,
उनकी बाहो मे कुछ देर मै सो गई,
मोहब्बत की जैसे एक शुरुआत हो गई,
ये किस्सा हमारी पहली मुलाकात का था,
वो दिन एक सर्द भरे इतवार का था !

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