जब प्रश्न हमारे रूप बदल कर पन्नों पर गिर जाएंगे,
जब द्वंद सभी हठ योग त्यागकर पुलकिल मन से गायेंगे
जब भाव भरे निकले आखर खुद अंतर्मन हो जाएंगे
तब मन हल्का हो जाएगा
ख़ुशी भारद्वाज-
उफ़ ये मोहब्बत या दिल्लगी या बेताबी या हर्फ़ -हर्फ़, ज़र्रा -ज़र्रा सिर्फ उसका है
ये सदाकत, रफ़ाकत, लियाकत वाला शख़्स बयां नहीं करता....... शिकवा इसका है-
ज्यादा दिन का सफ़र नही है
ये सच है कोई ख़बर नहीं है
सुना.. तुम्हारा मकां बड़ा है
दिल तो शायद मगर नहीं है
हमारी मिलनी जहां हुई थी
नहीं ये वो तो शहर नहीं है
ये चाह थी कि अधिक जीऊंगी
मगर है लगता बसर नहीं है
सुनो ये रस्ते जिधर हैं जाते
हमारी मंज़िल उधर नहीं है
इक तुम हकीकी में जी रहे थे
मगर हकीकत इधर नहीं है
तुम क्यूं सफ़र में चली रही हो
खुशी तुम्हारा सफ़र नहीं है
कैसे सुकूं से मैं जी सकूंगी
उसको सुकूं जो अगर नही है-
हे पागल...इतना नहीं याद करते हैं।
हां ठीक है, मान लिया मौसम अच्छा है, सुहाना है और तुमको इस मौसम में मेरी याद बहुत आती है पर समझा तो करो....
बस भी करो न
हिचकी तो रुक ही नहीं रही मेरी । अच्छा सुनो.... सुनो ना,. अगले हफ़्ते आ जाउंगी मैं, इसी मौसम के साथ
ठीक है ना.....🤫🤫🤫-
तुमको पता है....
जब तुम पर अधिकार समझती नहीं थी पर प्रेम था तब प्रतीक्षा भारी नहीं लगती थी। अब तुमसे कुछ अधिकार जो मिल चुके हैं तो प्रतीक्षा भारी लगती है, भय लगता है..... धूमिल हो सकता है प्रेम मेरा तुम्हारे प्रति।
तुम वर्तमान को निरन्तर चलने को कहते हो, सहमत हूं परन्तु क्या मैं वो रहूंगी जो बीते समय पर थी... तुम्हारी प्रतीक्षा में लिप्त। क्या तुम वो रहोगे जो थे..... भावनाओं से परे।
क्या मैं सत्य रह पाऊंगी....क्या अधिकार प्राथमिक और प्रेम द्वितीयक नहीं हो जाएगा?
भय रहता है बहुत सी होनी अनहोनी से। तुम कहोगे विचार त्याग दूं, पर फल यही हुआ तो.....
हम विलग तो नहीं हो जाएंगे न... तुम मुझसे घृणा तो नहीं करने लगोगे ना....
कुछ विचार सच में मुझे परेशान कर देते हैं, जिनमें से एक ये भी है।😑-
तुम अब भी इंतज़ार कर रहे होगे
मैं अब भी मना ही करूंगी
तुम फिर भी थोड़ी कोशिश और करना
तुम मना लोगे मुझे,
शायद.....© KB-
अब छोड़ा है मुझको तुमने
अब शायद मुझको बुरा लगेगा
मैं शायद खुद को कोसूंगी
अभी भी कुछ तो जुड़ा लगेगा
तुम पर अपना हक कहती थी
हक भी मुझसे जुदा लगेगा
दूर रहोगे अब तो तुम भी
कौन मुझे अब भला लगेगा
खुशी ने सांकल लगा लिया है
पर तुमको दस्तक खुला लगेगा-
सुनो,
खीर बनाई है आज.... हां -हां मुझे पता है कि तुमको KB special खीर बहुत पसंद है🤗। मुझे याद है कि तुम जब भी कहते थे मैं तुम्हारे लिए खीर बना दिया करती थी और तुम बहुत मन से खीर खाते हुए मेरी तारीफ़ करते रहते थे।
आज यही तारीफ़ miss कर रही हूं 🥺। आज इतने दिन बाद जब मैंने फिर खीर बनाई तो तारीफ़ करने वाला कोई नहीं था।
तुम कहो, तुम वापिस कब आओगे?आने से पहले मुझे खत डाल देना। मैं तुम्हारे लिए KB special खीर जरुर बनाऊंगी।
और सुनो कुछ नए शेर लिखे हैं मैंने, आओगे तो सारे शेर तुमको सुनाना है, तुम तो जानते हो न कि जब तक तुमको ना सुना दूं... मुझे लगता ही नहीं कि शेर अच्छा है 😊
......तुम जवाब में एक खत जरुर डाल देना। पिछले हफ़्ते भी तुम्हारा कोई खत नहीं आया था और हां.... आने से पहले खत जरुर डाल देना
तुम्हारी KB 😌-
तुम वैसी तो नहीं हो, जैसा चाहता था मैं पर फिर भी तुम पर मन अटक क्यों जाता है...?
मतलब ऐसा क्या ख़ास है तुम में जो मेरे जैसा इन्सान भी तुमसे अछूता नहीं रह पाया। इतना तो मैं जानता हूं कि अगर मैं तक तुमसे बच नहीं पाया तो बहुत से होंगे ऐसे जो तुमको पसंद करते होंगे। पर इतना सोचने के बाद भी मैं समझ नही पा रहा हूं कि क्यों..... आखिर क्यों मैं तुमको देख कर खुश होने लगा? क्यों मैं तुमको देखना चाहने लगा हूं? क्यों चाहता हूं कि तुमको सुनूं मैं.... मतलब तुम कुछ भी बोलो, सब कुछ.... बस तुम कहती रहो और मैं सुनता ही रहूं।
...... लेकिन मैं जानता हूं कि ये सब मैं चाहता हूं, तुम नहीं तो तुमसे किसी बात की जिद नहीं करूंगा और मैं ये भी नहीं चाहता कि तुममें जरा भी बदलाव आए क्योंकि तुम जो हो ना.... उसी वजह से तुम पसंद हो।
एक चाहत थी.... कि तुम मेरे साथ कुछ समय बिताओ, मैं कुछ ज्यादा नहीं पर तुमको खुल कर हँसता देखना चाहता हूं, मैं देखना चाहूंगा कि तुम हस रही हो या खुश भी हो....
इतना सा बस.......!-
मैंने ,छोड़ा सारा सपना खोजा
फिर घर का कोई कोना खोजा
ताख पर सब कुछ धर आई मैं
जब हँसने में भी रोना खोजा
जब सबको मैंने जाते देखा
सारा जादू - टोना खोजा
और नहीं मिला जब कुछ भी रस्ता
फिर इसका हल तब खोना खोजा
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