Khushboo Rawat  
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Joined 10 April 2018


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Joined 10 April 2018
10 MAY AT 23:42

आज ये खयाल आया यूं ही कि
तुम ना होते तो मैं क्या होती?
शायद इक ऐसी अकेली "ख़ुशबू"
जिसकी संगी कोई हवा न होती,
जिसकी सहेली कोई फ़िज़ा न होती...
मेरा होना भी ना होने जैसा था मेरे लिए
पाकर सब कुछ खोने जैसा था मेरे लिए...
मुझे महकना भी है और महकाना भी
ये एहसास कराया तुम्हारी मोहब्बत ने...
गुल खिलाना है इस जहां में सबसे प्यारा
ये याद दिलाया मुझे तुम्हारी सोहबत ने...
सीने में जो दफ़न थी कब्र अरमानों की
ये कभी खूबसूरत फूलों की सेज नहीं बनती
सोचती हूं कि तुम ना होते तो मैं क्या होती...

तुम ना होते तो मैं क्या होती...

—Khushboo Rawat






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26 JAN AT 11:20

सुनिए...
आप इस पूरी कायनात के
वह सबसे बेहतरीन मर्द हैं....
जिसके मुख़ातिब न होकर भी मैं
उसके हर लम्हात में होती हूंँ...
मैंने नहीं खोली अपने ज़िंदगी
की किताब किसी के भी आगे
पर पढ़ लिया आपने हर दर्द
हर ज़ख्म मेरा जो नासूर था...
मरहम लगाया और बांध दी
बड़े ही हौले से प्यार की पट्टी...
लाइलाज इस रोग का इलाज
मैंने आपकी आँखों में पाया है...
जबसे देखा है मुझे नज़र भर के
मेरी नासाज़ सी तबियत को
ज़रा ज़रा सा आराम आया है...

—Khushboo Rawat

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15 JAN AT 13:02

जो ज़रूरी है
ज़िंदगी की
फ़स्ल के लिए...

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15 JAN AT 12:16

ये जो शबनम की बूंदें है फ़िज़ाओं में बिखरी हुई,
कुछ और नहीं "ख़ुशबू" नमी हैं इन आंँखों की...

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12 JAN AT 11:07

तड़पती रातों का मंज़र याद नहीं हमें
इस कदर अधमरा वो छोड़ गया हमें...

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12 JAN AT 10:53

जब वो भूल गया हमें तो हमने भी रोना छोड़ दिया ,
गम के अंधेरों में थकी आंखों संग सोना छोड़ दिया...
आहत हुई भावनाओं का ढेर इकट्ठा हुआ था दिल में,
उस ढेर में सुलगती आग को अब कुरेदना छोड़ दिया...

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12 JAN AT 10:34

तेरी यादों के जुगनुओं का उजाला
मेरी अंधेरी ज़िंदगी के रोशनदान से चुपके से आता है।
आँगन में पड़ी टूटी चारपाई पर रखा
तेरा नज़ाकत से लिपटा ख़त बड़े ही सुकून से गाता है।
मैंने फ़ैला रखे हैं अरमानों के सूती गीले कपड़े
जिन्हें इंतज़ार है उस गर्माहट का
तेरे होने की धूप का वो एहसास जो धीमे से लाता है।


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5 JAN AT 11:14

रंग नहीं ज़िंदगी में अब कोई रंगरेज़ भी नहीं,
मौत से यारों अब तो हमें कोई गुरेज़ भी नहीं...

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5 JAN AT 10:56

तहकीकात की फ़िर भी कोई सुराग़ हाथ न लगा,
मेरे जज़्बातों के बेरहम कातिल तू छुपा है कहां?

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5 JAN AT 10:37

जुड़ते रहे, टूटते रहे
कुछ इस तरह हम टुकड़ों में बिखरते रहे...
आंँसू बहते रहे आंँखों से
और हम सोने की तरह हर पल निखरते रहे...

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