कुछ पल अपने साथ के,जो मुझे सुनहरे लगते हैं, सिर्फ़ वक्त की पाबंदियों को, छोड़कर उन पलों को जी रही हूं। मिलने की इच्छा तो इस बैचेन मन को भी होती है, पर ये दूरियां है,कभी थमने का नाम भी नहीं लेती। रही बात लफ़्ज़ों की,तो पूछा मैंने इन वादियों से, पर वो तो एक शब्द नहीं बोलीं...