और मेरी दूरियां
उतनी ही थी
जितनी धरती से गगन
मैं घबराती रही
शर्माती रही
पहली बेंच और शिक्षकों से
दूर भागती रही
जैसे जैसे क्लास बढ़ती रही
मेरी दूरियां घटने लगी
शिक्षकों से मैं अब मिलने लगी
अपना और उनका मन जीतती रही
और इस तरह से मैं एक दिन
चांद पर पहुंच गई-
मेरे अपनो का मैं सब कुछ हूँ.....
कृपया followback की आशा से f... read more
गणनाएं बहुत हुई
इंसानों की , वाहनों की , कमाई की
और जानवरों की भी
बस नहीं हुई तो
महिलाओं के द्वारा
बनाई गई रोटियों की
धोए गए बर्तनों और कपड़ों की
क्यों.....
क्योंकि इन सब को महिला का
कर्तव्य बताया गया जिम्मेदारी बताई गई
जिसकी ना कोई तनख्वाह है
ना एक दिन की भी छुट्टी
ना ही कोई खास प्रशंसा-
तू पहचान उसे कभी पाया नहीं
मैं देती रही सुबूत दर सुबूत
तू दर्द मेरा कभी देख पाया नहीं
आंसू बहाए मैंने रातें जगी कितनी
टूटती रही बिखरती रही कितनी
तू गिनती कभी कर पाया नहीं-
कृष्णमय जग सारा
मैं राधामय हो जाऊं
सब पाएं कृष्ण को
मैं राधा संग इतराऊं-
लड़के ने प्रेम कहानी सुनाई
तो लोगों ने ताली बजाई
दर्द भी हुआ शेर भी गाए गए
वही प्रेम कहानी लड़की ने सुनाई
तो बिगड़ी हुई , आवारा और
ना जाने क्या क्या तमगे मिले
क्यों.........
कहानी वही किरदार वही
बस सुनाने वाले के लिंग अलग
तो प्रतिक्रियाएं अलग
वाह रे समाज
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अब ना जाएंगे उन गलियों में कभी दुबारा,
फ़िगार कुछ इस कदर दिल हुआ है काफ़िर-
कैसे शब्दों की एक जादुई दुनिया में
खुद को उतारा जा सकता है
और हर दिन कविताओं संग डुबकी लगा
जिंदगी की नाव को गोते खिलाया जा सकता है
बहुत सुखदायक है ये सफर
बहुत सुकून है
योरकोट के साथ
खुद के लिए जीना है-
हो बात आखिरी तो क्या
हो रात आखिरी तो क्या
जिन्दगी है बड़ी बेरहम
तुम उससे कोई फ़साना रखना
हां जिंदगी से याराना रखना-