सुबह हो तो गई है
हां मगर मैं अब भी गुम हूं
रात के अंधेरे में कहीं
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मेरे अपनो का मैं सब कुछ हूँ.....
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ख्यालों की खिड़की से
बाहर निकलना तो चाहती हूं मगर
एक सुकून है इस दुनिया में
जो मुझे बांधे रखता है
रखना चाहता है पास मुझे
हमेशा हमेशा के लिए-
जब आतंकी ने सिंदूर महिलाओं का उजाड़ा था
भूल गया वो उसने भारत की मर्यादा को ललकारा था
मर्यादा, जिसके लिए रामायण और महाभारत हुई
आतंकियों ने धर्म को छेड़ युद्ध के लिए उकसाया था
फिर क्या था ,,जाग उठा वो शेर जो बरसो से सोया था
मानवता की खातिर जिसने शिकार करना छोड़ा था
बरस पड़ा आतंकियों के गढ़ पर वो कुछ ऐसे
आंधी, तूफान , चक्रवात एक साथ आया हो जैसे
कहा था उस आतंकी ने ' जा कर मोदी को बताना '
जैसे कहा हो हर बार की तरह तुमसे कुछ नहीं हो पाना
सबक ऐसा सिखाया है अब ,याद रखेगा आतंकी और आतंक
अब ना होगा कोई भी गुनाह माफ अब बस होगा "अंत"-
मैंने अंधेरों को चीरकर रौशनी पाई है
वरना ज़िंदगी ने तो साजिश रची थी मुझे गिराने की-
ख्यालों की भुलभुलैया में
कहीं छुपा पड़ा है
दर्द पुराना
गर तुमने छुआ भी
तो रो पड़ेंगे हम-
किसी के अपनो को ईश्वर ने छीन लिया
कोई जानबूझ कर पूरा परिवार छोड़ गया-
मां बनी तो जाना
अक़्सर लोग बेटी से ज्यादा बेटा क्यों चाहते हैं
क्योंकि इतनी तकलीफों के बाद मिली शोहरत
किसी ओर को सौंप देने में बस जान नहीं निकलती
बाकी छूट बहुत कुछ जाता है-
अच्छा सुनो
कल सुबह जब तुम जागोगे
बाहर धुंध में छिपी मेरी परछाई को
ना ढूंढ पाओगे
परेशान ना होना
मैं मिलूंगी तुम्हें
बरसती ओस की बूंदों में
मीठी धूप में
तपती आंच में
तुम्हारे आस पास ही
बस तुम छू नहीं पाओगे मुझे
क्योंकि तुम खो चुके होंगे मुझे
तुम्हारे गुस्से ,तुम्हारे अहंकार
तुम्हारी बेरुखी से बहुत दूर
कहीं जा चुकी हूं मैं-
अपनी ज़िंदगी दाव पर लगा
एक इंसान को जन्म देती है
फिर भी पुरूषों ने शोर मचाया
महिलाएं कमजोर होती हैं-
दुनियां सारी सिर्फ कमियां ही निकालेगी
अच्छाइयां तुम्हे खुद देखनी और दिखानी होंगी-