मैं भिन्न हूं.. सभी के लिए अभिन्न हूं फिर भी मैं भिन्न हूं पुरुष प्रधान इस समाज में चुप रहूं तो अबला हूं कह दूं तो बेहया हूं मैं... भिन्न हूं.. तनिक मेरी व्यथाएं भिन्न है हृदय में वेदनाएं अधिक है मैं मोम की गुड़िया हूं मैं भिन्न हूं.. बंधन सारे मैंने थाम रखें हैं अपने न कोई ख़्वाब रखें हैं यूं भी तो मैं बदनाम हूं सब के लिए इल्ज़ाम हूं मानो कोई सामान हूं अपनों के घातों से हैरान हूं अंतर की पीड़ाओं से क्षीण हूं चुप रहूं तो अबला हूं कह दूं तो बेहया हूं मैं... भिन्न हूं।।
मैं नहीं हूं धरा सी सहनशील, न ही मेरा विशाल हृदय है, मैं एक अबोध बालिका हूँ, जिसका कच्चा सा मन है।।
है नहीं प्रेम का ज्ञान मुझे, न ही मैं परिचित हूँ एक रूप के अनेक रंगों से, नहीं है संघर्षो का भय मुझे, न ही जीवन जीतने का हठ है, मैं कोमल सी कली हूँ, जिसे जीवन जीने की आस है।।
भटकी नहीं हूं अंधेरों में मैं, न ही पिंजरों ने मुझे घेरा है, पर है नहीं कोई उड़ान मेरी, बिना पंखों की आजाद चिड़िया हूँ मैं।।
एक स्त्री... जन्म देने के लिए एक जीवन जीवन भर करती है कड़ी तपस्या।।
धूप, ठंड, बरसात हर मौसम में, हर हाल में दर्द से चीखती नसों को सहेज अपने आँचल में सुख, दुःख, पीड़ा, वेदना, घबराहट पल पल परिवर्तित होती भावनाओ में स्वयं को संतुलित रखती है।।
एक स्त्री... जन्म देने के लिए एक जीवन जीवन भर करती है कड़ी तपस्या एक स्त्री। ।
एक बूंद,, जो बरसती है जमीं पर.. अंतः तक पहुंचती धरती की.. वो जीवंत करती है एक पौधा.. पौधा,, जो प्रतीक है उस प्रेम का,, जो तपा संघर्ष में,, कटुता सह प्रेम में,, प्रत्येक क्षण उज्ज्वल होता,, प्रेम धरा अंबर का.. पल पल बढ़ता,, और अंततः प्राप्त करता,, प्रेम का रूप.. जो फिर माध्यम बनेगा,, उसी प्रेम का,, जिस प्रेम ने दिया उसे जीवन....
मुस्कुराता तुम्हारा चेहरा सजता आंखों पर गहरा धूप, धूप नहीं वहां साथ तुम्हारा हो जहां ढलती शाम की लाली चमकती मेरी बाली हरी घास सुनहरी और यादें तुम्हारी...
नित जो मुझे हंसाती कंधे पर सिर रख हाथों में हाथ डाल प्यार से सहलाती यादें तुम्हारी...
होती जब मैं उदास बैठ मेरे पास करती बातें तुम्हारी यादें तुम्हारी...
मैं रिक्त हृदय चाहती हूं,, क्योंकि मैं सभी से प्रेम करना चाहती हूं।। मैं इच्छाओं का अंत चाहती हूं,, अधिकार का अंत चाहती हूं,, मैं प्रेम का अंत चाहती हूं,, क्योंकि मैं सभी से प्रेम करना चाहती हूं।। मैं स्वयं का समर्पण चाहती हूं,, भावनाओं की स्थिरता चाहती हूं,, क्योंकि मैं सभी से प्रेम करना चाहती हूं।।
ये पुष्प,, ये लताएं,, ये मेघ,, बरसती बूंदे,, और प्रेम में हम तुम..... रौशनदान से आती हल्की रौशनी,, लहराते केश,, और प्रेम में हम तुम..... छुपता निकलता चांद,, ये रात,, ये ख़्वाब,, ये साथ,, और प्रेम में हम तुम.....