होली का दिन था,थी प्यास कुछ इस तरह
ख्याल मुझे आने लगे, बचपन था मेरा किस तरह
बचपन कुछ ऐसा था, बस यारो के रंग जैसा था
कभी झगड़ना कभी मनाना यही तो बस एक पेशा था
दौर तो वो अलग ही था, में जो बहुत शर्मीला था
थोड़ा सा खामोश था, हल्का सा अभिमान था
पढ़ाई में ना रुचि थी, लगन नहीं थी काम की
फिर भी ना परवाह थी, जरा किसी के प्यार की
समय बदला बचपन निकला, आ गई अब जिम्मेदारी
जीवन की इस भाग दौड़ में, छूट गई थोड़ी सी यारी
पर सच कहूं तो वो लाइफ, बहुत बहुत ही अच्छी थी
दो चार ही सही, पर यारी सबकी सच्ची थी
है उम्मीद दिन एक ऐसा आएगा, होंगे सारे साथ हम
जिएंगे उन लम्हों को, पीछे जो छोड़ आए हम
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