Khumar Abhro   (खुमार अभ्रो)
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Joined 31 March 2021


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7 AUG AT 21:18

सनक ए इश्क़ और हमपर ना हायल हो सका।
आशिक़ी से दिलजले ना कभी काहिल हो सका।।

गर्दन के नीचे होठों की मेरी निशान मिल जाए।
आरज़ू से तमन्ना भी अब तेरी दिल हो सका।।

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28 JUL AT 23:42

उन लबों से मेरी इज़हार भला कैसे होता।
जिसका लाल होना मेरे दिल से गहरा हुआ।।

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25 JUL AT 19:49

आशिक़ी में ना शुक्र था “खूमार”, इश्क़ कभी ना मुकम्मल था।
वगर्ना मजनू फरहाद रांझा मिर्ज़ा तेरा भी एक नाम होता।।

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23 JUL AT 0:10

तुझसे ज़रा सा मैं जुड़ा जो ना होता ।
आँखों में नहीं तो परवा दिल में होता।।

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16 JUL AT 23:53

यह उलझन है कैसी ज़रा ना इस दिल को चैन आती।
किसकी यादों से हर बार मुझे बेकरार सी रैन आती।।

ढूँढता है मुझको निगाहें उसीकी सनम हूँ में जिसका।
ना इतना तड़प में मेरी दिल अपना तुझे मान आती।।

आरज़ु के किस पार से तलब की थी वो मेहफिल।
हसीन बदन ना सही ज़रा सा होठों पे रुझान आती।।

यह कैसी नशा है या चढ़ा सर पर मेरी है खूमार्।
आँखों के आगे बसी रात भर वही अंजान आती।।

ज़िंदगानी भी हर तरफ किस कदर मेरी रुकी हुई।
सोचो ना भी तो दिल में शोला बनके मेरी जान आती।।

आँखों में नमी नहीं पर दिल है सीने में अपना भारी।
यादों में होते है लम्हें उनसे नज़्दिक की परेशान आती।।

दिल भी क्या करें जब पास उसे कोई इतना बुलाए।
बुलावा हो ऐसी की पहरों में उसकी ही रैन आती।।

या मैं हूँ उसकी या चारों तरफ़ से वोह “खूमार” की।
बता ही दिया ना जाने उसपे कैसे मेरी यह जान आती।।

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11 JUL AT 20:15

यह ज़िद्द मोहब्बत की नहीं बस आशिक़ी दिल में होती।
हुस्न तेरी दस्तारस् में मेरी ना कहीं तुम्हें जाने को मिलती।।

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5 JUL AT 0:10

आशिक़ी की ख़ुमार् किस कदर तेरे सर पर हाज़िर है।
आँखें खुली हो या हो बंध चेहरे की बुखार ना जाती है।।

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3 JUL AT 0:25

आशिक़ तो पहले से पर निकला “ख़ुमार” शायर बेमिसाल का।
दिल तो कभी जुड़ा नहीं तोड़ ना सका दिल को इत्मिनान से।।

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29 JUN AT 14:54

यह आँखें जिस बदन की तिश्नगी में फिरा बेकरार।
सपनों में बराबर सताती हकीकत में ही कम आती।।

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24 JUN AT 21:35

किस ज़ुबाँ से बेपनाह इश्क़ भला हो सके बयान।
निगाहों से आलम ए नशा हटती नहीं मेरे यहाँ।।

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