यह आँखें जिस बदन की तिश्नगी में फिरा बेकरार।
सपनों में बराबर सताती हकीकत में ही कम आती।।-
हाले दिल जैसी भी हो ख्वाबों की रहनु... read more
किस ज़ुबाँ से बेपनाह इश्क़ भला हो सके बयान।
निगाहों से आलम ए नशा हटती नहीं मेरे यहाँ।।-
दिल ए दाग़दार को टूटा हुआ दिल के सिवा मिला ही क्या।
बेचैन उल्फ़त की अंजान सी डोर से भला दिखा ही क्या।।
कोई बात जो दिल से गर निकली होती तो होता क्या भला।
मुद्दतों पुरानी बिन लबों से निकले इश्क़ मेरा सुना ही क्या।।
तरतिब से निकली जिस्म से तेरी खुशबू मेरी चारों ओर।
कोई चेहरा था काबिल ए दीद नज़रों से बदला ही क्या।।
इस जहाँ से दफा किया क्या यादों ने तेरे दिल की चैन।
रहा परेशां मैं बेचैनी हद से बढ़ा तूने घटाया ही क्या।।
आगे यह समा भी तेरे चेहरे की नूर से हुई पूरा रोशन।
तु ना मिला तो गर्मी में पेढ़ के नीचे का छाया ही क्या।।
किसकी शोख़ी ने किया इस दिल की धड़कन को भारी।
हमें अंदाज़ा ना था कब उस काकुल् ने पुकारा ही क्या।।
किस फिराक से अपने शहर से कामियाब होने निकले।
इश्क़ की गिरफ़्त में दूर होकर सबको बताया ही क्या।।
एक नाम तो फिरता होगा “खूमार” लबों के तेरे भी पार।
तेरे बदन पे और लाल गुलाबों का निशान मिटा ही क्या।।-
किस तरह की नुमाईश ए प्यार पर आस ए जिस्म सरेआम है।
ज़माना बदल ही गया लकीर ए प्यास जो दिखा खुलेआम है।।
आग ए तलब को आँखिर हिमाकत तो है शिद्दत के उस पर।
क्या खबर था जानम मुझको जो मिला तुझसे इल्ज़ाम है।।
इतना ही दिल ए इल्तेफ़ात बना है कुढेड़के हर एक ज़ख़्म।
आशिक़ी को मरहम ना मिला तो हमसे शिफा का पैगाम है।।
एक चेहरे की आहट ऐसी करे दिल ओ जिगर मेरी बेचैन।
रात दिन हो मेरी काहिल ऐसे इस दिल पे उसकी लगाम है।।
ऐसी आँखों में चाहत भरा हुई राज़ सारी सामने बेनक़ाब।
चैन मेरी हुई बेहोश इतनी की दिल तेरे लिए अब हमाम है।।
असर ए गुरूर का मकाम टिका रहा बढ़ा है तलब की पार।
बदन की चाहत रुका रहा दिलों पे कलम रहा बेनाम है।।
अपनी खबर बनी तेरी नज़र तु चाहें जिधर दिखे वही दर।
दिल की लगी बेताब सी बनी रैनों में दिखी मुझे शाम है।।
आगे है तिरी कई जान ए जिगर “खुमार” को समझा क्या।
सिलसिला यह बनेगी कहानी तेरे लिए तो सब दयाम है।।-
दिल भी मेरी वाजिब किस्म की रंगीन बना हैं।
गुलिस्ताँ बदलते ही नया कोई गुलशन बना हैं।।
करामत था यह क्या पहले का कोई वारदात का।
किस बात पे पत्थर अपना दिल संगीन बना हैं।।
अपना यह चाल में भी पिछला नादानी ना रहा।
आगे से देखो हर बंधन में मेरी सावन बना हैं।।
आशिक़ है कौन जो प्यार को कहीं गवाया नहीं।
इश्क़ वो करे है जो आशिकी समाधान बना हैं।।
नय राहों पे नई मंज़िल रहा बाकी ना कोई खौफ़।
गुज़री हुई राहों से दिल से ही एक ज़हन् बना हैं।।
आँखें नहीं थी झील से आगे गहरा कोई दरिया।
बाहों में भर ले हम हुस्न तेरा वैसा आफ़्रीन बना हैं।।
हुआ गेसुओं की वो जुंबिश मिला साँसों को ना चैन।
यह नक्शा वो आदाएं मेरी साया तेरी साजन बना हैं।।
आगे आती थी हँसी ठेहरा रहा बंध हर दरवाज़ा।
"खूमार्" देखा तेरे लिए सभी दिल ए नादान बना हैं।।
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दिल क्या तराश सकेगा कोई नेक सा लाल पान का।
शीशा से खंजर तक का सफ़र पर हुआ साजन का।।
हम किस जानिब देखे है पत्थर बनते सब इंसान का।
संग ए मरमर से बना मन्दिर पे ऐतबार है नादान का।।
हर एक परिंदा चाहे पंखे भरे उड़ान स्वर्गलोक का।
एहसास तो है पर परेशान भी बंदे हर खांदान का।।
लब ये मेरे अशफक् कि सूरत ठहरी बेचैन उनकी।
सूरत से आगे बढ़ लू बुलावा ना आय अंजान का।।
आशिक़ का पता ना मिला दैर में या तो कलीसा में।
दिलरुबा की अंचल दिखा ही दिया हुबल रेहान का।।
तलाश शुरू जहाँ होता ज़रा सा ख़तम वहाँ ना होता।
गुरुर पे टिका हो जो नाज़ बता होगा क्या मेहमान का।।
हुस्न पे गिरा जो रहबर तूफान ए किरदार ना पहचाना।
शराफत दिल से क्या निकला इश्क़ टूटा दिलशान का।।
पूछा खुदसे ‘खुमार’ तो एक साथी तुझको ना दिखा।
ख्यालों में दिखी साफ़ वोह मिला सोहबत ए रिंदान का।।
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यह कैसी है आदत तिरी जो मुझे सोने नहीं देती।
तिरी खुमार की तलब सपनों से आने नहीं देती।।
सम्हाला है ख़ुदको तो यादों में दिखा तिरी फ़रेब।
सुलगती हसरतों को पूरी तरह से बुझने नहीं देती।।
उभरती हुई जिस्म की तिरी दीदार हो आगे कम।
हुस्न की साया तिरी मुझे कोई पता ढूंढने नहीं देती।।
इश्क़ के काबिल रहा ना तू बताना यह बात रब से।
निशाने पढ़ी है इतनी तुझपे एक भी मिटाने नहीं देती।।
दिल जो हुआ बेताब ना रहा कुछ ख्वाइश अब बाकी।
जाने या अंजाने में कई साकी सुबह जाने नहीं देती।।
रफ्ता रफ्ता जा चुकि है इस ज़िंदगी की नक्शा कहीं ।
दरख़्त हुआ मैं वो हसीन एक गुल खिलने नहीं देती।।
जादू सा कोई एहसास मुझको हर तरफ़ से होने लगा।
किसी की जादू पे मुझको क्यों काहिल होने नहीं देती।।
मुझसे तु यकिनन खो चुकी है या इरादा है तिरी कुछ और।
‘खुमार’ का नींद गहरा हो किसी को वोह उठाने नहीं देती।
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तबाही के सिलसिलों में कहाँ मैं कहाँ तुम।
बुलंदी का हुआ मकाम जहाँ मैं वहाँ तुम।।-
दिल किस मोम का बना रखा है ‘खुमार’ आपने।
हर निखरी हुई जवानी अपने नाम कर चले जो।।-
दिखा नहीं होगा आसमान को वैसे अपनी चाँद।
दिलबर मेरे बाहों के दरमियाँ रखी है जो रुदाद।।-