बरसात का मौसम अजब मंज़र निकल आये।
मासूम सी चींटी के देखो पर निकल आये।
मैं देखता ही रह गया आस्तीन को मेरी,
जब जेब से मेरे कई अजगर निकल आये।
दीवार के भी कान यूँ कच्चे रहे साहिब,
फिर बेज़ुबाँ इक नींव के पत्थर निकल आये।
अन्धी है मेरी पीठ ये आँखें नहीं रखती,
ये सोचकर हँसते हुए ख़ंजर निकल आये।
अब हादसे जंगल में भी होने को हैं प्यारे,
तलवार लेकर हाथ में बन्दर निकल आये।
तू वक़्त पे ही जीत लेना दौड़ ये मामू,
मालूम क्या घोड़े तेरे खच्चर निकल आये।
इस हुस्न के लाखों सितम होने लगे दिल पर,
धड़काओ मत इतना कि ये बाहर निकल आये।
ख़ूने जिगर से सींचता था रात दिन जिन्हें,
रिश्तों के वो गुलशन सभी बंजर निकल आये
खेमचन्द'उदास'
2212 2212 2212 2 2-
पानी पर पानी लिखता हूँ पानी से,
देख रहा दरिया मुझको हैरानी से।
मैं डर जाता हूँ इंसानी सायों से,
इश्क़ हुआ है मुझको अब वीरानी से।
जब से छूना आसमान को सीख गए,
सहरा छोड़ गए दरख़्त आसानी से।
चाँद झुकाकर नज़रें दर पर बैठा है,
रिश्ते हैं मेरे परियों की रानी से।
वादा है बादल को काजल कर दूँगा,
दूर जरा तुम रहना सुरमेदानी से।
मुझको पत्थर ख़ुद को शीशा कहता था,
टूटा था वो ख़ुद अपनी नादानी से।
राज सभी बेपरदा मैं बदनाम हुआ,
सम्भले नहीं सम्भलते ख़त दीवानी से।
खेमचन्द'उदास'
दरख़्त-पेड
वीरानी-वीरान होने का भाव-
पानी पर पानी लिखता हूँ पानी से,
देख रहा दरिया मुझको हैरानी से।
मैं डर जाता हूँ इंसानी सायों से,
इश्क़ हुआ है मुझको अब वीरानी से।
जब से छूना आसमान को सीख गए,
सहरा छोड़ गए दरख़्त आसानी से।
चाँद झुकाकर नज़रें दर पर बैठा है,
रिश्ते हैं मेरे परियों की रानी से।
वादा है बादल को काजल कर दूँगा,
दूर जरा तुम रहना सुरमेदानी से।
मुझको पत्थर ख़ुद को शीशा कहता था,
टूटा था वो ख़ुद अपनी नादानी से।
राज सभी बेपरदा मैं बदनाम हुआ,
सम्भले नहीं सम्भलते ख़त दीवानी से।
खेमचन्द'उदास'
दरख़्त-पेड
वीरानी-वीरान होने का भाव-
वक़्त को भी वक़्त पे सब भूल जाना चाहिए,
दिल के पंछी को भी थोड़ा आबो दाना चाहिए।
आज माज़ी से मिला तो हो गया मुझको यकीं,
दर्द को ज़ख़्मों से इक रिश्ता पुराना चाहिए।
रास आई हैं लबों को गर तेरे खामोशियाँ,
हाले दिल फिर धड़कनों से ही सुनाना चाहिए।
ले उड़ा सूरज सहर में चाँदनी के नूर को,
धूप पे भी चाँद को पहरा लगाना चाहिए।
सीखना हो टूटने का इल्म दुनिया से अगर,
आइनों को पत्थरों से दिल लगाना चाहिए।
आज मुद्दत से मिले वो फिर बिछड़ने के लिए,
हसरतों का घर जुदाई से सजाना चाहिए।
तेरी आमद से हुआ ये शह्र मेरा गुलसिताँ,
गीत कोई आशिकाना गुनगुनाना चाहिए।
इल्म-ज्ञान
सहर-सुबह
माज़ी-अतीत-
नज़र से वो हमें मिस्मार करने वाला था,
हमारे से भी कोई प्यार करने वाला था।
ज़मीं पे माँ तेरा साया मेरा मुकद्दर है,
वगरना तीर्थ मैं भी चार करने वाला था।
उड़ाते हम भी परिन्दे नये मुहब्बत के,
मगर वो फिर नई तक़रार करने वाला था,
ज़मीं से नस्ल मेरी अब मिटाने को ज़ालिम,
वो पूरे शह्र को बीमार करने वाला था।
उतर के आ गया था खूँ ज़िगर का आँखों में,
मैं ख़ुद को और भी खूँखार करने वाला था
हवाओं ने लिया आग़ोश में चरागों को,
मैं अपने यार का दीदार करने वाला था।
फ़लक आ गिरा है आज क़दमों में मेरे,
मैं मेरे हौंसलें हथियार करने वाला था।
मिला के हाथ तेरे शह्र में मुहब्बत से,
मैं मेरी मौत को तैयार करने वाला था।
खेमचन्द'उदास'
मिस्मार-नष्ट
वगरना-वर्ना-
नमन सभी गुणीजनों को
सादर निवेदित
121 22 121 22 121 22 121 22
नया है मुलजिम नया है मुन्सिफ़ तेरीअदालत नई नई है,
जला कहाँ है ये शह्र मेरा अभी शिकायत नई नई है।
जरा हक़ीकत पता लगी तो अदू बने हो हमारी जाँ के,
बता रहीं हैं तुम्हारी नज़रें अभी अदावत नई नई है।
अकड़ना मुर्दों का काम यारो जरा मुहब्बत से पेश आओ,
तुम्हारे खूँ में जो आ मिली है तुम्हारी नफ़रत नई नई है।
उठा के पत्थऱ कहाँ चले हो नहीं हैं शीशा मेरे मकाँ में,
फ़लक से ऊँचे हैं ख़्वाब मेरे तुम्हारी ताक़त नई नई है।
चमन से काँटे हटाने होंगें लहू से धोना है फिर लहू को,
गुलों के हाथों में चुभ गए वो हुई शरारत नई नई है।
खेमचन्द'उदास'
मुंसिफ़=न्यायाधीश
अदू=दुश्मन
अदावत=दुश्मनी
फ़लक--आसमाँ-
मेरा अभिमान है भारत मेरा सम्मान है भारत।
धरा पर ईश का लगता हमे वरदान है भारत।।
जहाँ पर पूजते हम नारियों को मान कर देवी।
अहिल्या और सीता का सदा गुणगान है भारत।।
कभी होली कभी राखी कभी क्रिसमस यहाँ यारों।
दिवाली ईद पर मिलकर खिली मुस्कान है भारत।।
दया धीरज क्षमा को हम बनाकर शस्त्र लड़ते हैं।
बिना तलवार तोपों के बड़ा बलवान है भारत।।
मुकुट जिसका हिमाला है बनी है मेखला गंगा।
अखिल संसार का देखो नवल उत्थान है भारत।।
नज़र नापाक मत रखना जलाकर राख कर देंगे।
हमारी धड़कनों की सुरमयी ये तान है भारत।।
लहू से सींचकर वीरों ने जिसको सब्ज़ कर डाला।
शहीदों की अमर गाथा का ये उन्वान है भारत।।
यहाँ कण कण में पावनता बहे सौहार्द का दरिया।
मुसलमाँ और हिन्दू का ये हिंदुस्तान है भारत।।
उन्वान=शीर्षक
सब्ज़=हरा भरा
खेमचन्द"उदास"-
बादल गाते लावणी,खेत करें मनुहार।
धरा नवोढ़ा हो गई,कर सोलह श्रृंगार।।
भीगे गोरे अंग सब,देह हुई कचनार।
साजन मेरे मेघ सम,करें प्रेम बौछार।।
आकर मेरी नींद में,शोर मचायें ख़्वाब।
काग उड़ायें रात-दिन,पलकों के महराब।।
पायल के घुँघरू बजे,कंगन करते शोर।
अधर लालिमा ले गया,सावन में चितचोर।
भीगी -भीगी रात है, तन मधुरिम मकरन्द।
लगा गले से साजना,लिखो प्रीत के छन्द।।
गजरा टूटा सेज पर,नथ में उलझे केश।
सिन्दूरी आँखें कहें,साजन आये देश।।
खेमचन्द'उदास'
पाली मारवाड़
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22 22 22 22 22 2
दिल का दर्द बड़े नाज़ों से पाला है,
शीशे की सूरत में पत्थर ढाला है।
नाम हथेली पे लिखकर चूमा शायद,
मेहन्दी वाले हाथों में इक छाला है।
चाँद ज़रा ख़ामोश रहो,इतराओ मत।
चाँद ज़मीं का छत पे आने वाला है।।
खेमचन्द'उदास'-
1222 1222 1222 1222
तेरी तस्वीर का जादू ग़ज़ल में मुस्कराता है।
चुराकर हुस्न गुलशन का ये लफ़्ज़ों को सजाता है।
मै उल्फ़त के समुन्दर में डुबो देता हूँ जब ख़ुद को-
वफाओं की बना कश्ती वो साहिल पर लगाता है।
खेमचन्द'उदास'-