উড়াং ফাড়াং করেছে মনটা
বাহেরা কনেক বিরাম,
ঘরত বসি বসি নয়া
কতদিন আর জিরাম,
ঝুমুর ঝুমুর পরেছে পানি
বেড়ের উপায় নাই,
তার বাদেনা কয়দিন ধরি
ঘরটায় হইসে ঠাঁই।
ঘরত আসি হাজির হইসে
লাল নুটি আর ব্যাঙ,
ধরকা টেমাইত মাছ পরেছে
ডারিকা পুঁটি চ্যাঙ।
ছাগল গরু গিলাক নিয়া
হইসে মহা জ্বালা হায়!
পানি পরাখান কমিলে উমরাও
চাইরটা ঘাস পাতারি খায়।
জমির বাদাম জমিবারিতে
ডুবিয়া যাছে পচিঁ,
বোরো ধানের শীষ গিলাও
পরেছে জলের ডাংত খসি।
অকালোতে আজি ক্যানে
বাইষ্যা নামিল ইমন!
কইর্লা পটোল পঁচিল জমিত
ডুকুড়ি কান্দে চাষির মন।
দহলাবাড়িখান দেখিলে মন কয়
জল থৈ থৈ নদী,
এইখান জল নাগিল হয় কাজোত
কয়দিন পরে হইল হয় যদি।।-
कोई नहीं है अपना यहां
एक तेरे सिवा ओ श्याम,
मेरे रोम रोम में राम रहा है
एक तेरा ही बस नाम।
सभी रिश्ते नाते झूठा जहां की
झूठा है शहरात शान,
जग के मोह में छूट ना जाए
अपना धर्म ईमान।
रखना तू खयाल इतना
पकड़े रखना हाथ,
साथ जब छोड़ेगा यह दुनिया
तुम निभाना साथ।
मनमे मेरा आज घोर अंधेरा
फिर रही हूं मैं प्यासी,
संभालो मेरा मन को कन्हा
तुम बनके आओ सन्यासी।
ज्ञान से प्यारा उद्धव तेरा
प्यार से प्यारी राधा,
तेरे संग मिलने की इस जन्म में
आस ना रहे मेरी आधा।
श्री राधा राधा रटते हैं मन
राधा के चरण ना छोडूं,
मुझे कन्हैया बारिश बना दो
सीटू राधा नाम की तरु।
संसार कन्हैया तेरी रचना
मैं हूं तेरी दासी,
इस दासी का तुम रखना लाज
घिरे ना इसको कोई उदासी।।-
অভিমানী বারিধারায় সিক্ত মাটিতে পুঁতেছিলাম,
একটি লাউ আর একটি মিষ্টি কুমড়োর বীজ।
মাঝে মাঝে ওদের মোহে মেঘেরাও ঝরে।
সেই বীজ গুলোর অঙ্কুরোদগম দেখেছিলাম।
আজ লাউ গাছটার লতা-ডগা, বাহারি পাতারদল
দেখে পুনরায় তার মায়ায় জড়িয়ে গেলাম।
মিষ্টি কুমড়োর গাছটিতে বেশ সুন্দর ফলন হয়েছে।
সবজির ঘাটতির কারণে সেদিন একটা যত্ন করে রেধেঁছিলাম,
চেখে দেখার আগেই বুঝতে পারলাম এ কুমড়ো মিষ্টি হয়নি
বরং স্বাদে ভারী নোনতা।-
দর্শন আমার ভীষণ প্রিয়,
সবার থেকে দর্শন শ্রেয়,
পড়তে হয় না গাদা গাদা,
পরীক্ষার খাতায় বাঁচে পাতা,
লজিক বুঝলে পরম মজা,
বিষয়ের মধ্যে দর্শনই সোজা,
দর্শনের মাঝেই মানব ধর্মের অর্থ,
আস্তিক নাস্তিক না বুঝলে জীবন ব্যর্থ।
সারা বিষয় জুড়ে তাঁদেরই বাণী,
যাঁরা মহান ভীষণ রকম জ্ঞানী।-
হঠাৎ করেই উড়ে গেলাম সুখ পাখিটার মত,
উড়িয়ে দিলাম আঁকড়ে রাখা দুঃখ ছিল যত।
দুঃখেরা তাই হারিয়ে গেল অনেক অনেক দূরে,
শান্তি পেলাম পর্ব শেষে আমার হৃদয় জুড়ে।
দেখি এখনো সবুজ গাছের পাতা আর আকাশখানি নীল,
আর আকাশপথে ঘুরে বেড়ায় আজও শঙ্খচিল।
বনের পথে শাবক ছানা ছুটছে পাগলপারা,
দেখি আগের মতই ছুটে চলেছে স্বচ্ছ নদীর ধারা।
দেখি ফুলের সুবাস এতদিনেও একই রকম আছে,
মিঠেল সুরে গাইছে পাখি আজও নানান গাছে।
দেখি গাছগুলোতে রংবেরঙের ফল ধরেছে কত,
রাখাল বালক আনছে ধেনু যে যার নিজের মত।
দেখি নববধূ জ্বালায় প্রদীপ আজও তুলসী তলায়,
শাঁখ বাজা আর উলুধ্বনি শুনছি যে তার গলায়।
সাঁঝের বেলায় শুনতে বসে ঠাকুরদাদার অলীক গল্পগাঁথা,
দেখি আজও বালক ঘুমায় রেখে মায়ের কোলে মাথা।।-
सुनती हूं मैं नित्य दिन को
सियाराम के बोली,
राधे कृष्ण के नाम सुन के
खेलना सिखा हू होली।
श्याम है मेरा भोले भाले
मधुर है इसके बोली,
नटखट है वहीं श्याम मेरा
भिगोए सखी के चोली।
शीघ्र हमें पुकारो श्याम
सत्य है अगर राम नाम।
जाप और तप को हम ना जाने
हम तो भोली गवारनी,
छोड़ देंगे जब यह देह
होगी नैया आपको तरणी।
गम नहीं अब किसी बात का
चाहे कोई कुछ भी बोले,
मोहन हमको बुला रहे हैं
उसके पास अब होले होले।
एक वही है सत्य यहां,
सार भी है एक वहीं,
पल दो पल की है यह जीवन,
जाना है हमें फिर वही।।-
ए मेरा मन तू किसी का ना बन,
छोड़ सारी स्नेह की डोर छोड़ सभी बंधन,
बांध मोह की रोड, कर कृष्ण की वंदन।
जगत के निवासी करे बस तेरा व्यवहार,
कन्हैया आप ही नैया लगाइए उस पर।
लोभ और लालसा हर लीजिए आप,
लालसा के हेतु करते हैं सब पाप।
हे दुखहर्ता भाग्य विधाता सुन लीजिए यह विनती,
हूं छल कामी पापी दुराचारी खुद ही मानती।
दया के आप सागर त्रिलोक के उजागर,
विश्व विनायक हार लीजिए जीवन मरण के डर।
हे नाटनगर भाव के भूखे हैं आप अगर,
भाव को मेरा कर दीजिए उजागर।
किस विधि मोहन दौड़ लगाए,
अपना पंथ आप ही दिखाइए।
हे गिरिधारी सूर्यमयी बांसुरी वाले,
जीवन मन को आपकी प्रीत में डालें,
हे दशोदिशारी आप जगाबंधु हमारे,
घुंगरालू केश और कजरारे नैन वाले,
स्वीकारिए नमन करलीजिए आपके हवाले।।-
সবার একটা পাহাড় থাকুক
সেই পাহাড়ে লুকিয়ে রাখুক
মন কেমনের গোপন কথা
যত ব্যাধি আর নীরব ব্যথা
বারাক শোভা বরফ হয়ে
ঝর্ণা ঝরাক দুঃখ ক্ষয়ে
খরস্রোতা নদীর মত
বয়ে চলুক আবেগ যত
চলার পথে আসলে বাঁধা
বাধাঁর গায় আঁকুক বদ্বীপ গোলকধাঁধা
পাহাড় থাকুক দৃঢ় অনর
ঊর্ধ্বে করুক যত দেব চরাচর
দেবালয়ে আতর ছড়া ধূপের মত
পুষ্প রাশি গন্ধ ছড়াক অবিরত।
প্রার্থনা সব মেঘের রথে
ভাসতে থাকুক আকাশপথে।-
আমারও পানে আসিছে ধেয়ে কে বাহিছে দ্বার দেখিতে নাহি পাই,
ওহে কান্ডারী তোমারে আমি দু নয়ন ভরিয়া একটিবার দেখিতে চাই,
যাব তোমার সনে লোহিয়া যাইবে যেথা কোন দ্বিধা বিনে,
যাবারও ক্ষণে চাহি আপন হিয়ায় তোমারে লহিতে চিনে,
শুধাবো না তোমারে কে তুমি এসেছো হইতে কথা!
লাভ-লোকসানের হিসাব সে মধুর লগনে করিব না বৃথা,
যত বিরহ বাধিঁয়াছে প্রাণে ঢালিব পথে নদীর কোলে,
চলিতে চলিতে মিলিবে তাহারা অতল আঁধারে সাগর জলে,
পাইবে প্রাণ গহীন বন গাহিবে বেহাগ নবীন কুঞ্জে বসি,
যে শাখাটি বন্ধা রয়েছে উঠিবে সে শাখা পুষ্পে পুষ্পে হাসি,
ছোঁয়া ধরার বাইরে অপানীয় দুর্বিষহ মাদকতা হইবে হাজির,
ধূসর জোছনায় মলিন হইবে ধ্রুবতারা নাহি মিলিবে তাহার কোনো নজির।-