सवालों में से सवाल सिर्फ इतना बाकी है।
मैं उसमे कितनी और वो मुझमें कितना बाकी है।-
ख़ामोशियाँ भी बोलती हैं
कभी आंखों से,
कभी सांसों से,
कभी यादों से,
कभी एहसासों से,
कभी बेवजह मुस्कुरा देने से,
कभी चुपचाप चले जाने से।
कुछ एहसास लफ़्ज़ नहीं मांगते,
बस महसूस होने को काफी होते हैं।
हमने देखा है मोहब्बत को
बिन कहे, बिन सुने
बिन मांगे, बिन मिले...
बस ख़ामोशी में पलते हुए
एहसास की गोद में
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देखो कितनी खुदगर्जी है इस रब की।।
बिजली कहीं तो गिरी पर हम पर ना गिरी।।-
लफ़्ज़ों के कतरो में लिपटी
इक प्यार की मूरत सी
एहसासों की नरमी लिए
फूलों की ताज़गी सी-
ये जो फासले है ना तुम्हारे हमारे दरमियाँ
सिर्फ एक यही रिश्ता तो बाकी है जान -ए-जाँ-
जहाँ महक है तेरे एहसासों की
हवा में घुली है खुशबू तेरी साँसो की
आँसुओ का सैलाब भी है
और मनहूसियत भी फैली है घोर सन्नाटों की
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सुनो उसी की जुबानी
कैसे धीरे धीरे ढलता है
वो चांदनी की आगोश में
नरम नरम बांहों के घेरे में
बंध कर वो
हो जाता है नूरानी-