Khalid Moh   (Khalid Moh)
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Joined 14 June 2019


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Joined 14 June 2019
14 JUN AT 20:47

उस दिन…
मैंने खुद को समझा दिया,
कि वो शख़्स
अब मेरा थोड़ा भी नहीं रहा।
वो हँस रही थी,
अपने मनचाहे कपड़ों में,
सजी हुई,किसी और की उँगलियाँ थामे हुए।
किसी और की बाहों में बाहें डाले हुए
और मैं?
बस खड़ा देखता रहा,
जैसे कोई सपना हो
जिसे अब देखने का हक़ भी नहीं रहा।
अचानक,
सब कुछ बेमानी लगा,
लोगों की कही एक बात याद आई
"लोग सच में बहुत जल्दी बदल जाते हैं…"
और मैंने,उस बदलाव को चुपचाप स्वीकार कर लिया।

अब तुम आज़ाद हो
मेरी सोच से भी,
मेरे दिल से भी,
और मेरी ज़िंदगी से भी।
पर हाँ,
मैं तुझसे नफ़रत भी नहीं करूँगा,
क्योंकि नफ़रत भी एक रिश्ता है,
और अब…
हमारा रिश्ता ही कहां है?

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31 MAY AT 14:17


तुम जो भी कहते हो गौर करना, शायद तभी तुम चुप हो पड़ोगे,
सभी को लफ़्ज़ों से देके इज़ा, सभी को एक दिन खो पड़ोगे।

ये रंगो-नुसरत, ये हुस्न-बाला, फ़क़त यही है अना का ज़रिया,
तो ढलती शामों की रंगतों में, स्याह बनके खो पड़ोगे।

तुम्हारे लहजे खराब हैं पर, तुम में है एक और भी खामी,
तुम्हारे लहजे में तुम्हारी बातें, अगर मैं कह दूं तो रो पड़ोगे।

बहुत हुए हम सुकून के क़ायल, मगर तुम्हारे न साथ पाए,
अपनी बातों की बेरुख़ी से, मेरी मोहब्बत को खो पड़ोगे।

तुम्हें तो आदत है तोड़ने की, हर एक रिश्ते की नाज़ुकी को,
कभी जो टूटेगा दिल तुम्हारा, उस दिन खुद से हो पड़ोगे।

जुबां से फूल भी गिर सकते हैं, अगर नियत साफ़ रखो तो,
वरना काँटों भरे अल्फ़ाज़ से, खुद में भी ज़ख़्म बो पड़ोगे।

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5 MAY AT 18:35


ये जो मैं इतना सुलझा हुआ हूं,
बहुत उलझा कभी था उलझनों में।
जीवन कोई सीधी रेखा नहीं है,
ये वृत्त है—जहाँ प्रारंभ और अंत मिलते हैं कहीं।

हर प्रश्न जो भीतर जन्मा,
वो उत्तर नहीं चाहता था,
वो बस चाहता था—मैं स्वयं को टटोलूं,
अपने अस्तित्व के आयाम खोलूं।

मैं गिरा भी, टूटा भी,
पर हर टूटन ने मुझे पूरा किया।
हर भ्रम ने मुझमें विवेक बोया,
हर अंधकार ने मेरी दृष्टि को तीखा किया।

मैंने जाना—सत्य कोई शब्द नहीं,
वह अनुभव है, जो मौन में प्रकट होता है।
और शांति, कोई मंज़िल नहीं,
बल्कि यात्रा का ढंग है—सहज, सजग, स्वीकृत।

अब जो स्थिरता है मेरे स्वर में,
वो अराजकता की कोख से जन्मी है।
ये जो मैं इतना सुलझा हुआ हूं,
बहुत उलझा कभी था उलझनों में

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17 AUG 2024 AT 21:09

मुझसे 'जुदा' होने वाला हर शख्स बहुत 'पछताया' है
मेरी जान तुम ये दोनो काम मत करना।

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21 JUL 2024 AT 15:20

तुम्हारे लहजे खराब हैं पर, तुम में भी है और एक खामी,
तुम्हारे लहजे में तुम्हारी बातें, अगर मैं कह दूं तो रो पड़ोगे।

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14 JUN 2024 AT 17:34

मैं ख़ुद को भूल जाता हूं
मेरी जान तुम किस गुमान में हो।

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25 MAR 2024 AT 9:03

हमने रंगे थे गाल पे खूब प्यार की गुलाल,
लेकर चला गया उसे कोई बस मांग भर के।

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21 MAR 2024 AT 14:28

और उस शख्स से परेशान होकर मैं
खुद अपने वजूद से भाग रहा हूं

मेरा दुश्मन नहीं सिवा मेरे कहीं
मैं ज़ेहन को अपना दुश्मन बना रहा हूं

मैंने सोचा, बहुत सोचा और इतना सोचा
ऐसा क्या पाया था जो लगता है गवां रहा हूं

मेरा गम मेरी परेशानी उतनी भी नहीं
जितना मैं इन्हे अशआर में जता रहा हूं

ये कहानी मेरी नहीं सभी की है खालिद
मैं शायरी नहीं फितरत बता रहा हूं।

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18 FEB 2024 AT 7:21

जिसने खोया है वो जानता है मुझे
तुम भी जान जाओगे एक दिन मुझे
रफ्ता........ रफ्ता .......

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4 JAN 2024 AT 9:47

गिरने का हुनर उसका
शायद ही किसी से कम हो
तापमान तो बहुत गिरा
मगर फिर भी उससे ज्यादा है।

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