ख़ामोश लफ्ज़   (ख़ामोश लफ्ज़)
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Insta @khaamosh_lafzz
Joined 8 March 2020


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मैसेज के ज़माने में
मैं खत लिए बैठा हूं।
मोबाइल के ज़माने में
कबूतर से उम्मीद लगाए बैठा हूं।
बहुत पीछे रह गया हूं
इस ज़माने में
मौसम की तरह बदलते प्यार से
मैं उम्रभर की आस लगाए बैठा हूं।

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अजनबी होकर भी मिल गए ना
किस्मत का क्या पता
एक भी करा दे।

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या खुदा!
तुझे तो सब पता है
फिर जिन्हें एक करना नही
उनमे प्यार क्यूं करवाता है।

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ना मुझे प्यार किसी से
ना किसी को पसंद करता हूँ
बस एक शख्स है
जिसे हर वक़्त महसूस करता हूँ।

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हमने नाम पूछा और हम गलत हो गए
हमने नाम पूछा और हम गलत हो गए
तुम्हारा क्या
जो प्यार का ढोंग कर रहे हो।

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कुछ वक्त से खाली घर में
जब कोई नही जाता।
ताउम्र खाली इस दिल में
वो कैसे आ जाता।

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जब खुदपर गुजरी तब उन्हें समझ आया
क्या होता है तन्हा रातों में जगना।

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काश ! जमाने का फलसफा मै भी समझ पाता
खुद को तेरी जरूरतों के साथ बदल पाता।
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.........
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सुनो!
तुम श्रृंगार पूरा कर लेना
पर तुम्हें पायल मैं पहनाऊँगा।

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बात चली जब प्यार की
हमने तुन्हें याद किया।
बादल काले देख कर
तेरे काजल को याद किया।
गर्मी की तेज धूप मे
तेरी झुल्फों की छाओ को याद किया।
जग की सजावट देख कर
तेरी सादगी को याद किया।
माना ज़िन्दगी का सफर
तुम बिन तय किया हमने
पर इस सफर के हर पल में
हमने तुम्हें याद किया।

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