ख़ामोश क़लम   (100aib khan)
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Joined 26 October 2020


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डर सा लगने लगा है दौर रे जमाना देख कर
लोग शादी पे मारे जारे है खजाना देख कर

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27 NOV 2024 AT 23:59

मुझे वहाँ से पढ़ना सुरू करो जहां मैं ख़ामोश हुआ
हँसना और हसाना तो सोक और हुनर है हमारे

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इस क़दर क्या ज़ल्दी थीं तुम्हें जाने की ,
बाते अधूरी ही रह गयी तुम्हें बताने की ।
अधूरे से सफ़र में एसे कौन जाता है ,
दोस्ती का बिताया हुआ हर लम्हा हमे तड़पाता है ।

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ए बारिश थोड़ा थम के बरस
लोग रहते है कच्चे मकानों में

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जिनसे मोहब्बत है , वो दूसरो के दिखावे में डूब रही है
एक तड़पते हुए आशिक़ की कस्ती अपना किनारा ढूँढ रही है

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ना जाने इतनी तनहा रातो में मैं क्यों रोता हूँ
लोग जब जाग जाते है तब क्यों मैं सोता हूँ



4:00 am

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लोग सफलता की सीढ़ी चढ़ते है
हम सायद उल्टे Escalators पर चढ़ गये ।

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इन रातो ने भी मेरा साथ छोड़ दी
तनहाइयो ने भी मुझसे मुँह मोड़ दी ।
कैसे गुज़ारे इक पल भी बिन तेरे हम ,
ख़ामोख़ जन्मों जन्म का रिश्ता जोड़ दी ।।

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25 APR 2024 AT 12:40

Travelling Dhokla To Makda 😂

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अब तो ना होश है
ना मुझे मेरा ध्यान है ,
आज तन्हाईयो का सफ़र है , क्योकि
तुम्हारी गेर मोज़ूदगी का असर है

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