आँखों के नीचे काले घेरे बताते हैं…
होंठों पर जो मुस्कान है, झूठी है…
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सहमी हुई है झोपड़ी, बारिश के खौफ से,
महलों की आरज़ू है, कि बरसात तेज हो..
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मन नही करता
कभी नींद आती थी..
आज सोने को “मन” नही करता,
कभी छोटी सी बात पर आंसू बह जाते थे..
आज रोने तक का “मन” नही करता,
जी करता था लूटा दूं खुद को या लुटजाऊ खुद पे
आज तो खोने को भी “मन” नही करता,
पहले शब्द कम पड़ जाते थे बोलने को..
लेकिन आज मुह खोलने को “मन” नही करता,
कभी कड़वी याद मीठे सच याद आते हैं..
आज सोचने तक को “मन” नही करता,
मैं कैसा था? और कैसा हो गया हूं
लेकिन आज तो यह भी सोचने को “मन” नही करता।-
न जाने किसने पढ़ी है मेरे हक़ में दुआ,
आज तबियत में जरा आराम सा है!-
मुस्कुराते इंसान की कभी जेबें टटोलना...
हो सकता है रुमाल गीला मिले ..
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हम झूठों के बीच में सच बोल बैठे ...
वो नमक का शहर था, और हम ज़ख्म खोल बैठे....-
किसके लिए जन्नत बनाई तूने,"ऐ खुदा"
कौन है यहाँ जो गुनहगार नही !!!-
बेजान चीज़ो को बदनाम करने के
तरीके कितने आसान होते है….!
लोग सुनते है छुप छुप के बाते ,
और कहते है के दीवारो को भी कान होते हैं…!!-
बर्तन खली हो तो ये मत समझो की माँगने चला है ।। हो सकता है कुछ बांट के आया हो ।
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मैं भी तुम जैसा हूँ , अपने से जुदा मत समझो !!
आदमी ही मुझे रहने दो, खुदा मत समझो ,
और यह जो होश रहता नहीं तुमसे मिलके !!
ये मेरा इश्क़ है, तम इसको नशा मत समझो
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