शोर की एक निश्चित उम्र है, लेकिन ख़ामोशी सदाबहार है।
– अज्ञात
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*"समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध,
जो तटस्थ है, समय लिखेगा उनके भी अपराध" [1]*
राष्ट्र की बात हो या नारी का सम्मान , हर काल में इस देश का भीष्म , कभी तटस्थता के नाम पर , कभी सिद्धांतो के तो कभी राजनैतिक प्रतिबद्धता के नाम पर, सत्य के साथ खड़े होने से इंकार कर देता है। हर काल में भीष्म के मौन का दुष्परिणाम, हमें मातृभूमि की तार तार होती अस्मिता के रूप में दिखाई देता है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की ये कालजयी पंक्तियाँ , अन्याय को अनदेखा करने की हमारी उसी प्रवृत्ति की और इशारा करती है। समाज में अच्छाई के साथ खड़े होने के प्रति हमारी प्रतिबद्धता पर सवाल उठाती है।
पंडित नरेंद्र शर्मा भी समाज में फैली अव्यवस्था पर सामर्थ्यवान लोगो की अकर्मण्यता पर इसी तरह का प्रश्न कर रहे है,-
परशुराम ने कहा-'कर्ण! तू भेद नहीं मुझको ऐसे,
तुझे पता क्या सता रहा है मुझको असमंजस कैसे?
पर, तूने छल किया, दण्ड उसका, अवश्य ही पायेगा,
परशुराम का क्रोध भयानक निष्फल कभी न जायेगा।
'मान लिया था पुत्र, इसी से, प्राण-दान तो देता हूँ,
पर, अपनी विद्या का अन्तिम चरम तेज हर लेता हूँ।
सिखलाया ब्रह्मास्त्र तुझे जो, काम नहीं वह आयेगा,
है यह मेरा शाप, समय पर उसे भूल तू जायेगा।
[रश्मिरथी]-
सच है, विपत्ति जब आती है,
कायर को ही दहलाती है,
शूरमा नहीं विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते,
विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं।
रामधारी सिंह दिनकर-
वो जिनके दिल पे लगती है
वो आंखो से नहीं रोते ।।
वो जो अपनों के नहीं होते
वो किसी के नहीं होते।।-
ना जाने कितनी अनकही बातें साथ ले जाऊंगा,
और लोग कहते रहेगें खाली हाथ आए थे खाली हाथ ही जायेगें।-