बस एक तेरी आवाज़...बाकि कुछ भी नही...
तेरी आंखे, तेरी बातें, तेरा होना,
मेरी चाहत, मेरा हंसना, मेरा रोना...
तेरी ज़ुल्फ़े, तेरी खामोशी, तेरे अंदाज़,
हर एक बात याद है तेरी...
मेरी आदत, मेरा वो सब्र और मेरा नज़र-अंदाज हो जाना
अलग- अलग थे तेरे ख़याल और मेरे ख़याल...हुआ कुछ भी नही
इसी अंदाज पर हो गया कोई बर्बाद...बाकि कुछ भी नही...
तेरा आना, तेरा जाना, तेरी दीवानापन,
मेरा यूँ खामोशी से तुझे यूँ ताकते रहना,
सब कुछ याद आता है...
मुझसे बेहतर तो कई लोग मिलेंगे तुझको,
बस इसी उम्मीद पर तुझको, मेरा यूँ भुला देना,
सब कुछ याद आता है...
तेरी यादों का तमाशा नही बनाया जाता,
इस लिए खामोश रेहता हूं,
अब कुछ भी नही, हुआ कुछ भी नही...
काफ़ि हैं सिर्फ़ तेरे खयाल...बाकि कुछ भी नही...
बस एक तेरी आवाज़...बाकि कुछ भी नही...-
Delhite...दिल वालों की दिल्ली से !!
Ek shaayar bas thodi ... read more
हम खुद को अब और कितना ही बदलते ,
हमको बदलने वाला खुद ही बदल गया जब......-
चाहे कल जो भी हो..देख लेंगे...
क्यूँ करूँ आख़िर ज़माने की परवाह,
क्यूँ सोचूँ आख़िर कि ज़माना क्या सोचेगा...
बेफ़िज़ूल कि बातें आख़िर क्यूँ सोचूँ,
क्यूँ न जिंदगी को थोड़ा आसाँ बनाया जाए,
कुछ वक़्त के लिए बेफ़िक्र हो कर जिया जाये...
न अतीत का सफ़र, न भविष्य की डोर,
इन बातों पर हमारा कुछ इख़्तियार नही...
तो फ़िर क्यूँ न रहने दूँ और आज सिर्फ़...
आज को जियूँ....फ़िर....
चाहे कल जो भी हो..देख लेंगे...
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अभी थोड़ा और सफ़र बाकी है....
तमाम चेहरे कुछ न कुछ कहानी तो बता रहे हैं,
सफ़र में निकले तो है..फिर भी सफ़र कि तलाश में है
अपनी उम्मीदों और चाहतों की पोटली बांधे....
अंजाम से बेख़बर...बस चल रहे हैं...
सिर्फ एक इसी आसरे पर की जो भी हो सब अच्छा होगा....
लोग ना-उम्मीदी के दौर मे भी उम्मीद ढूंढ ही लेते हैं
जी हां मानो मजबूरियां ही इस सफ़र की ताकत हैं....
चलो जो भी है..जैसा भी है...सब बढ़िया है...क्यूँकि...
अभी थोड़ा और लुत्फ़ बाकी है....
अभी थोड़ा और सफ़र बाकी है....
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आज नही फिर कभी बैठेंगे...
तेरे ऐहसास को काग़ज़ पर उतार दूँ क्या,
अक्सर यही सोचता हूं...
तेरे ना होने का वजूद तेरे होने के ख़याल पर हावी होने लगा है...
दिल तो हौसला कर लेता है पर ये शोख़ आंखे बागी हो जाती है।
और फिर वही किस्सा और फिर वही कहानी,
समेट लेता हूं अपनी कलम और तेरे ख़याल सिर्फ एक इसी आस के साथ कि,
फिर कभी हौसला करेंगे.....
आज नही फिर कभी बैठेंगे......
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उम्रभर देखो परिंदा उड़ां देता रहा,
बेइंतहा, बेख़बर, इम्तिहाँ देता रहा....-
इस सवाल को सवाल ही रहने दिया होता,
काश तेरे ख़याल को ख़याल ही रहने दिया होता....-
ज़िंदगी, तू हैरान, परेशान और कितनी बेख़बर सी है,
कैसा भी हो सफ़र, मग़र सफ़र तो सफ़र ही है....-
मौजूद हम भी थे, तेरा ज़िक्र हो रहा था,
खामोश हम रहे सब जानकर के भी.....-