Kavyalaya   (भूपेंद्र सिंह परिहार)
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Joined 25 September 2018


Joined 25 September 2018
18 MAR 2020 AT 5:09

माना भ्रम है
ये सोने का पहाड़
सच क्या है?

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11 OCT 2021 AT 1:31

पता है कि मुझे राख हो जाना है
राख होने से पहले, निसां छोड़ने है।

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29 JUL 2021 AT 19:48

एक हवा ऐसी आयी
जिसने तोड़ा रोम रोम से
टूट गया तबही तो पहुँचा
संग हवा के, दूर दूर तक ।।

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19 JUN 2021 AT 21:36

मिल्खा तो बड़भागी है
उस पर बन गयी फ़िल्म
कितने मिल्खा खो गए
किसी को नहीं है इल्म

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19 JUN 2021 AT 21:21

पैसों से टूट गए कुछ
सांसों से रूठ गए कुछ
जनता को लूट गए कुछ
मरघट में छूट गए कुछ

ये जीवन तो कैसे भी हो कट जाएगा
काला बादल धीरे धीरे छट जाएगा

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19 JUN 2021 AT 20:50

चमकनु पैरें है वे सारी
कितनन ने आंखे तारी

चुटिया उनकी ऐसे डोले
जैसे नागन कारी

ठन ठन बजबें उनकी चुरियां
जब टारें तरकारी

कां से हार आओ सोने को
बातें बनबें बारी

जीजा जू भी खुश हो जैहें
मिले जो ऐसी सारी

सबकी नजरें चीन न पा रईं
जा की कि घर बारी

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13 JUN 2021 AT 19:09

कोई क्यों चुकेगा,
अपमान तुम्हारा करने से
तुम कर दो मुकदमा दायर
या फिर पेले से बन जाओ

जिस नाम से चिढ़ा वो बचपन में
उस नाम का अर्थ बदल डाला।

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12 JUN 2021 AT 9:43

ये आँखें जिसे खोजती है वो तुम हो
दिखती हो हर तरफ, पकड़ो तो गुम हो

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4 JUN 2021 AT 10:29

सच को छुपाने ख़ातिर
मुझे दफ़्न कर रहे थे
उनको पता नहीं था
मैं बीज पेड़ का हूँ।

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1 JUN 2021 AT 22:27

तितली के पंखों से, मच सकता है तूफान
छोटे छोटे प्रयत्नों को, न तू छोटा मान

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