माना भ्रम है
ये सोने का पहाड़
सच क्या है?
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एक हवा ऐसी आयी
जिसने तोड़ा रोम रोम से
टूट गया तबही तो पहुँचा
संग हवा के, दूर दूर तक ।।
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मिल्खा तो बड़भागी है
उस पर बन गयी फ़िल्म
कितने मिल्खा खो गए
किसी को नहीं है इल्म-
पैसों से टूट गए कुछ
सांसों से रूठ गए कुछ
जनता को लूट गए कुछ
मरघट में छूट गए कुछ
ये जीवन तो कैसे भी हो कट जाएगा
काला बादल धीरे धीरे छट जाएगा-
चमकनु पैरें है वे सारी
कितनन ने आंखे तारी
चुटिया उनकी ऐसे डोले
जैसे नागन कारी
ठन ठन बजबें उनकी चुरियां
जब टारें तरकारी
कां से हार आओ सोने को
बातें बनबें बारी
जीजा जू भी खुश हो जैहें
मिले जो ऐसी सारी
सबकी नजरें चीन न पा रईं
जा की कि घर बारी
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कोई क्यों चुकेगा,
अपमान तुम्हारा करने से
तुम कर दो मुकदमा दायर
या फिर पेले से बन जाओ
जिस नाम से चिढ़ा वो बचपन में
उस नाम का अर्थ बदल डाला।-
सच को छुपाने ख़ातिर
मुझे दफ़्न कर रहे थे
उनको पता नहीं था
मैं बीज पेड़ का हूँ।-
तितली के पंखों से, मच सकता है तूफान
छोटे छोटे प्रयत्नों को, न तू छोटा मान-