इंकलाब ज़िंदाबाद!
झूले थे फांसी फंदे पर जो इंकलाब की सोच लिए,
जिस अखंड एकता की खातिर थे वीरों ने बलिदान दिए।
क्या सोचा था उन वीरों ने की एक दिन ऐसा भी आएगा,
जब उनकी कुर्बानी भूलकर देश धर्मों में बट जाएगा......
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वो काली रात की तरह है, मैं हुं चांदनी उसकी।
वो धुन कोई है प्यारी सी, मैं हुं रागिनी उसकी ।
की उसके और मेरे बीच में कुछ ऐसा बंधन है,
वो कोई उम्मदा सा शायर है मैं हुं शायरी उसकी।।
की रोशन होती है महफिल जिसके आ ही जाने से।
बहारें भी लगे हंसने जिसके मुस्कुराने से।
की जिसका रूठना मानो हो मरुस्थल की लू जैसा,
वो सावन का घना बादल, मैं बरसात हुं उसकी।।-
कुछ ख्याल आज तन्हा होने का एहसास करा रहे हैं
मानो हम बिन बात के ही बेचैनी में खोए जा रहे हैं
किस से कहें ये कसमकश कोई राज़दान नहीं यहां,
हां ऐसे कई हैं जिन्हें हम अपना समझते आ रहें हैं....
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जिन्दगी के इस बदलते सफ़र बहोत कुछ बदल गया
की उनकी चाहतें बदली हमारा शौक़ भी बदल गया-
इश्क़ की गलियों में हम नीलाम हो गए
बहोत संभलकर चले फिर भी बदनाम हो गए
चर्चे हुआ करते थे भरी महफिलों में कभी हमारे
अब आलमे इश्क़ के चलते हम गुमनाम हो गए-
तुम्हारा शुक्रिया जाना मुझे तन्हाइयों का एहसास दिलाने के लिए
तुम्हारा शुक्रिया जाना मुझे सच्चाइयों से वाकिफ कराने के लिए
तुम्हरा शुक्रिया जाना मुझे इश्क़ ए तिलिस्म से बचाने के लिए
तुम्हारा शुक्रिया जाना मुझे मेरी जिम्मेदारियों का एहसास दिलाने के लिए
तुम्हारा शुक्रिया जाना मुझे तुम्हारी बेवफाइयों से वाकिफ कराने के लिए
तुम्हारा शुक्रिया जाना मुझे अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाने के लिए
तुम्हारा शुक्रिया जाना इस रिश्ते को यहां तक निभाने के लिए
तुम्हारा शुक्रिया जाना मुझे खुदसे रुबरू कराने के लिए
तुम्हारा शुक्रिया जाना मुझे यूं तन्हा छोड़ जाने के लिए....-
काश कि तुम मेरी ख़ामोशी की वजह समझ पाते
काश कि तुम मुझे अपने प्यार का एहसास दिला पाते
मेरी जिद मेरी नाफरमानी मेरे गुस्से को काश तुम मेरी नजर से देख पाते
काश कि तुम मुझे पाने के लिए थोड़ा और जहमत उठा पाते.....-
जरा मुश्किल है...
ऐतबार तो कर लूं मैं तुम पर
पर मोहब्बत करना ज़रा मुश्किल है,
ये जो आते जाते रहते हो तुम अक्सर
जरा संभल के "जाना"
ये कोई मैखाना नहीं मेरा दिल है...
कि तुम ढूंढ लो रूह कोई और अपने तिलिस्मी इश्क़ के लिए.
अब ये रूह मेरी ना तुम्हारे काबिल है...
और करनी हो कोई खता तो ज़रा संभलकर करना
तुम्हारी तोहमातें सुन सके अब ऐसा ना कोई काफिल है,
खामखा लुट गए हम इश्क़ ए बाज़ार में बिन मुनादी के
और तुमने फ़रमान जारी कर दिया की हम तुम्हारे कातिल हैं...
की हो सकता है तुम पा लो मुझे तमाम जद्दोजहत के बाद,
पर मेरी रूह के लिए तुम्हें अपना पाना "जाना"
ज़रा मुश्किल है...-
तेरे वक्त बेवक्त बोलने वाले लब कुछ ख़ामोश से हैं अब
तेरी वो चंचल आंखों भी मुझसे निगाहें चुरा रही हैं,
और मैने तो बस ख़्वाब में देखा था तुझे दूर जाते हुए
तेरा लहज़ा बता रहा है कि तू हकीकत में भी दूर जा रही है....-