प्रेमप्रिया, तू करुणा रूप,
वत्सल भी है, चंचल भी है,
आशा भरी निगाहें तेरी,
प्रेम को तरसती भी है।
क्या समय है आ गया,
तू वस्तु रूप है बनी,
त्यजित हुई, बेघर हुई,
जब उपयोगी न रही।
क्यूँ भूल बैठा मनुज ये,
तू ही कृष्ण की योगिनी है,
तू ही हरिप्रिया,
तू सर्व संकट हारिणी,
तू ही मोक्षदायिनी है।
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