कौन है जो एक साय की तरह
मेरे दिल को छूता हुआ जुजर जाता है
कभी पास से कभी दूर से
एक आवाज़ एक नग़्मा
एक गीत बन कर रग रग में उतर जाता है
कभी पास से कभी दूर से
कौन है जो मुझे अपनी तन्हाई का
एहसास दिला जाता है
एक खालीपन एक सूनापन छोड़ जाता है
मै उसे देखना चाहती हूँ जानना चाहती हूँ
उंगलियों से उसके चेहरे को छूना चाहती हूँ
कौन है जो पास राह कर भी मुझसे दूर है
क़दमों की आहाट सुनती हूँ पलटती हूँ
उसे देखती हूँ तस्वीर बन जाती हूँ
खुद को भूल जाती हूँ बेखुद हो जाती हूँ
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