ताकत तो मुझ मैं भी है सब से लड़ने की, मगर रिश्तों को तोड़ कर जीतना मुझे पसन्द नही है।
और जो रिश्ते मुझे पसन्द थे उनसे कभी मैंने उनके वक्त और साथ से ज्यादा कुछ माँगा ही नही था।
इसलिए अब बस मैंने मना लिया है अपने मन को, अब हर रिश्ते के साथ की उम्मीद मेरी जिद नही होती और अब मैं छोड़ कर जाने वालो की वापस लौट आने की कोई उम्मीद नही रखती।
हाँ अब मैं रिश्तों से ही रिश्ते की उम्मीद नही रखती।