सुख-दुख की हमदम है माँ,
मेरे लिए खड़ी हरदम है माँ!
ज़ख्म हो चाहे जितना गहरा,
हर ज़ख्म का मरहम है माँ!
कड़ी धूप की तपिश में भी,
देती जो राहत वो शबनम है माँ!
टूट भी जाऊँ तो बिखरने नहीं देती,
मेरा हौसला,मेरा दमखम है माँ!
मेरी खामोशियाँ भी पढ़ लेती है,
मेरी सच्ची महरम है माँ!
बिन उसके नहीं कोई वजूद मेरा,
इस धड़कते दिल की धड़कन है माँ!
वो कहती है मुझे जान अपनी,
खुद ही मेरा जीवन है माँ!
लफ्ज़ों में वो समाती ही नहीं,
लफ्ज़ों के बहुत ऊपर,अनंत है माँ!
- K@vita KS
12 MAY 2019 AT 6:34