पहला प्यार"
दिल ने जब पहली बार किसी को चाहा,
खुद से ज़्यादा उसे हर दफा चाहा।
नज़रें झुकी, पर दिल हर रोज़ उससे मिलने को मचलता था,
नाम जुबां पर न आए, पर हर बात उसी से शुरू होता था।
उसकी हँसी में जादू था, बातों में सुकून,
एक नज़ाकत थी उस एहसास में — जैसे कोई मीठा सुकून।
ख़्वाबों में पहली बार रंग भरे थे,
किसी के लिए सजने-सँवरने के बहाने बने थे।
शायद ये ही होता है पहला प्यार —
नासमझ, मासूम, पर सबसे ख़ास… दिल के सबसे पास।-
Turning my dreams into vision and my vision into realit... read more
तुम बिन अब मोहे कुछ और न भाता
हवा का हर झोंका तेरी ही यादें लाता
मैं कहा हु मुझ में अब , जब देखूं
मैं आइने में अक्स अपना जाने क्यों चेहरा तेरा ही नजर आता....-
ये आँगन तुम बिन सूना है, मां
तेरे बिना सब वीराना है,
हर दीवार पे साया तेरा।
झूले की रस्सी चुप बैठी है,
ढूँढ रही है हाथों का पहरा।
कभी जो तेरा आँचल था,
आज वो कोना भी चुप है माँ।
तेरी साड़ी की खुशबू तक
अब धूल के नीचे दबती है माँ।
तेरे बिना रसोई रोती है,
ना वो खट्टी चटनी बनती है,
ना हाथों का पराठा महके,
ना थाली माँ की सजती है
हर सुबह बिना तेरी आवाज़ के
सुनसान सा लगता है घर,
वो “उठ जा बेटा, देर न हो”
अब गूंजती है केवल भीतर।
तेरी आँखों की चिंता भर
नज़रों को तरस गया हूँ माँ,
जो चुपचाप सब समझ ले
वो सुकून सा तुझमें था माँ।
तेरे पाँवों की आहट को
अब कान तरसते रहते हैं,
कभी जो डाँट लगती थी,
अब वो भी गीत से लगते हैं।
माँ, तू थी तो हर दर्द में भी
एक हिम्मत सी जाग उठती थी,
अब तू नहीं, तो आँसू भी
कभी-कभी चुपके से डरते हैं।
तू थी तो घर घर लगता था,
अब तो सिर्फ़ ईंटें बची हैं।
तेरे बिना ये आँगन, माँ,
बस ख़ाली हवाओं से भरा है।-
आप मेरी पहली मोहब्बत हो
बिना कहे सब कुछ कह जाने वाले,
खामोशियों में भी जो असर छोड़ जाते हो।
धड़कनों में बसी हो कुछ इस तरह,
कि हर साँस में बस तुम ही नज़र आते हो।
पहली नज़र में जो दिल चुरा ले गए,
वो लम्हा आज भी यादों में सजा है।
न था इरादा कभी मोहब्बत का,
पर जब देखा तुम्हें, सब कुछ बदल गया।
आप मेरी पहली मोहब्बत हो,
जिसे पाने की नहीं, बस निभाने की ख्वाहिश है।
जिसके साथ ज़िंदगी के हर मोड़ पर,
चलते रहने की एक प्यारी सी आदत है।
तुमसे जुड़ी हर बात ख़ास लगती है,
तेरी हँसी जैसे सुकून की बरसात लगती है।
चाहे दूर रहो या पास, फर्क नहीं पड़ता,
क्योंकि दिल ने तुम्हें हमेशा अपने पास रखा है।-
मैं तुम्हारी कविता हूँ,
हर पंक्ति में बसी तुम्हारी धड़कन,
हर शब्द में बसी तुम्हारी मुस्कान,
तुम्हारे बिना अधूरी, जैसे संगीत बिना सुर।
तुम्हारे स्पर्श से खिल उठती हूँ,
तुम्हारी बातों में घुल जाती हूँ,
मैं वही एहसास हूँ,
जो हर शाम तुम्हारी थकान चुरा लेती है।
जब तुम दूर होते हो,
मैं स्याही में भीग जाती हूँ,
पर जब पास होते हो,
मैं कविता से प्रेम-पत्र बन जाती हूँ।
तुम मेरे हर मौसम का रंग हो,
हर भावना की संगिनी,
मैं तुम्हारी कविता हूँ,
और तुम मेरी कहानी।-
: तुम मेरे विकास हो
तुम्हारे संग ही जीवन ने अर्थ पाया,
हर मोड़ पर तुमने मुझे समझाया।
अंधेरों में जब राहें ना सूझीं,
तुमने ही दीप बन मुझे उजाला दिखाया।
तुम मेरे विचारों की उड़ान हो,
हर सपने की पहली पहचान हो।
जब थक जाता हूँ इस दुनिया की दौड़ में,
तुम्हारा ही साया मुझे सुकून दे जाता है।
तुम मेरे शब्दों की आत्मा हो,
हर कहानी की सच्ची परिभाषा हो।
तुम्हारे बिना अधूरा है ये जीवन,
तुम ही मेरी यात्रा की भाषा हो।
विकास की हर सीढ़ी पर जो साथ चले,
हर गिरावट में जो हाथ थामे रहे।
तुम ही वो शक्ति हो, वो विश्वास हो,
निस्संदेह — तुम मेरे विकास हो।-
तेरे आने से लगता है, जी उठी हूँ मैं
सदियों के सन्नाटों में फिर हँसी हूँ मैं।
टूटे हुए ख्वाबों की राख से उठकर,
तेरी पलकों पे फिर बसी हूँ मैं।
तेरे लफ़्ज़ों में जैसे कोई गीत हो,
जिसे सुनते ही खुद से जुड़ती चली हूँ मैं।
जो अधूरी थी, तेरे अहसास से पूरी,
अब हर साँस में तुझसे जुड़ी हूँ मैं।
तेरे आने से दिल को चैन आया है,
हर तन्हाई अब साथ बन गई है।
जो पल थे वीरान और सूने कभी,
अब हर मोड़ पे एक नई कहानी है।
तेरे बिना जो धड़कन थी बस चलती सी,
अब हर धड़कन में ज़िंदगी की रवानी है।
तेरे प्यार ने कुछ यूँ रंग भरे हैं,
कि खुद से भी अब मोहब्बत सी हो गई है।
तेरे आने से मैं खुद को पहचान पाई,
तेरे साथ हर लम्हा एक नई राह लाई।
अब जो भी हूँ, तेरे होने से हूँ,
तेरे प्यार में ही फिर से जी उठी हूँ मैं।-
"मैं थी कभी…"
मैं थी कभी परियों जैसी,
रंगों में रंगी, हँसी में बसी।
हर सपना मेरा आकाश छूता,
हर दिन जैसे कोई गीत सा झूमता।
पर फिर आई एक चुप्पी, बेआवाज़,
धीरे-धीरे सब कुछ हो गया सूनाज़।
मुस्कान की जगह आई थकावट,
सपनों की जगह बस खाली आदत।
लोग पूछते हैं – "क्या हुआ?"
मैं मुस्कुरा देती हूँ, कहती हूँ – "कुछ नहीं…"
पर अंदर की चीख सुनाई नहीं देती,
जो रोज़ मेरी आत्मा को चीरती है।
आईना अब डराता है,
चेहरे से नहीं, उस खालीपन से जो झलकता है।
नींद में भी अब चैन नहीं मिलता,
हर रात कोई बीती टीस सा पलटता।
मैं जी रही हूँ… हाँ, बस जी रही हूँ,
पर हर साँस जैसे उधारी की हो।
हर दिन एक नकली अभिनय सा लगता है,
जैसे कोई लड़की… अपने ही साये से डरती हो।
मैं कहना चाहती हूँ…
कि मैं थक चुकी हूँ इस जंग से।
पर फिर याद आता है —
कभी तो फिर से वो सुबह होगी।
जहाँ मैं फिर हँस सकूँगी सच में,
बिना डर, बिना बोझ, बिना नकाब के।
हाँ… मैं टूट गई हूँ, मगर खत्म नहीं,
मैं अब भी उम्मीद हूँ… अधूरी सही।-
सपनों से भरी लड़की
नीले अम्बर की छांव तले,
आँखों में इक चमक लिए,
चलती है वो राहों में,
हर ख़्वाब को सच मान लिए।
हवाओं से बातें करती है,
सितारों से जो यारी रखे,
मंज़िलें जिसको बुलाती हैं,
हर ठोकर में हिम्मत रखे।
सपनों की वो रानी है,
सोच में बग़ावत लाती है,
भीड़ से अलग, अपने रंग में,
ज़िन्दगी को खुद गुनगुनाती है।
छोटे शहर की गलियों से,
बड़े जहाँ तक जाती है,
अपने नाम की चिट्ठियाँ,
वक़्त की डाक में डाल आती है।
ना डर है उसको हारों से,
ना थमती किसी दीवार से,
किरणों-सी वो बिखरती है,
हर रात के अंधेरे पार से।-
मैं 'मैं' से क्यों नहीं हूँ
मैं आईना तो हूँ, पर शक्ल किसी और की,
हर अक्स में ढूँढी खुद को, पर बात अधूरी सी।
हर पल किसी उम्मीद का बोझ उठाती रही,
फिर भी अपने आप से ही दूर जाती रही।
मैं हँसी तो हूँ, पर होंठों तक सीमित क्यों?
दिल की गहराइयों में सन्नाटा है भीत क्यों?
भीड़ में हूँ, मगर पहचान अपनी खो बैठी,
जैसे ज़िंदगी की किताब में कोई पन्ना छूट गई सी।
कभी किसी की चाहत, कभी किसी की उम्मीद,
हर रिश्ते में खुद को खोती रही नई-नई तमीद।
"मैं" कहाँ हूँ इस 'मैं' में, ये सवाल अक्सर आता है,
क्या सच में मैं हूँ, या बस किरदार निभाता है?
अब चाह है कि खुद से मिलूं, एक बार फिर सही से,
बिना मुखौटे, बिना डर के, उस अपनी ही रौशनी से।
क्योंकि जवाब शायद यही है उस सवाल का,
कि मैं 'मैं' तब ही हूँ, जब खुद से नाता हो वफ़ा का।-