बहुत ख़ास था वो शख़्स
अब आम सा हो गया।।-
According to physics ,
there is no such thing
exist as ideal.
so Be original-
एक दिन 'सिर्फ' मेरा घर होगा
ना पापा का ना भैया का होगा
ना मां का ना मामा का होगा
एक दिन सिर्फ मेरा घर होगा।
ख्वाहिश है मेरी भी ,
वहां मेरा एक सपनों का कमरा होगा।
न ही किसी के रोक टोक से
और न ही किसी के खर्चों का होगा।
वहां रोशनी मेरी चेहरे के तेज से चमकेगी,
वो न मायका होगा, न ससुराल होगा।
उस घर की खिड़की से देखूं कभी,
मेरे यहां तक के सफर का रास्ता होगा।
कोई बेरंगी सुनी चार दीवारों से नहीं ,
उसका हर कोना मेरे रंग में रंगा होगा,
लगी उसमें एक एक ईंट का हिसाब
मेरे सालों के संघर्ष से होगा।
कोई किराए का नहीं,
और ना ही सिर्फ एक मकान होगा,
वो मेरे नाम का ही
मेरे नाम से ही
एक kavita's HOME होगा।
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टूटा हुआ , जुड़ भी तो सकता है...
हां पर दरारें रह जाती है।
दरारें भी तो खूबसूरत हो सकती है।
और जुड़ जाने के बाद दरारें कितनी खूबसूरत है?
ये केवल जोड़ने वाले पर निर्भर करता है।-
जड़ से जुड़े रहना तरक्की का माध्यम है
जड़ चाहे पेड़ की हो या परिवार की
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इस क़दर खोए हो..
ये आंखे नम क्यूं हैं?
जब कोई अपना नहीं
तो खोने का ये ग़म क्यूं हैं?-