Kavita Madhur   (Kavita Madhur)
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Joined 28 April 2020


Joined 28 April 2020
28 MAY AT 19:23

कभी कभी लगता है
जीवन सफर में आज तक आते आते
छूट गया है बहुत कुछ
बीते लम्हों में ,
और हम खुद भी शायद
परिवर्तित हो जाते हैं ।
बदलता समय
कितना कुछ बदल देता है_
परिवेश , शख्सियत
अपने , पराये ।
कर देता है शान्त को अशान्त
अशान्त को शान्त
ध्वस्त कर देता है कभी कभी
ऐसे जैसे अटल गिरी
भरभराकर गिर पड़ता है
हो जाता है जमींदोज ।
बदल देता है प्रवाह ऐसे
निर्मल सरिता जैसे सूख कर
रह जाये एक पतली सी धारा
खोखली कर देता है
विशाल वृक्ष की जड़ो को
जो तूफान के विक्षोभ से
भरभराकर गिर पड़ता है एक दिन ।

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30 MAR AT 14:23

चैत्र नवरात्रि एवं हिन्दु नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं🌹🌹🌹🌹🌹

करूं आभार मैं दिल से कहूं हरदम बहारों से
कृपा यह बस उसी की जो सदा झांके नजारों से
करूं गुणगान उसका मैं नहीं शब्दों समा पाऊं
रखा जिसने बचा करके मुझे अक्सर विकारों से ।

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26 MAR AT 21:05

चलो तलाशें उसे
जो अबोध बच्चे की मुस्कान में है
फकीर की दास्तान में है
चिडियों की उडान में है
बासन्ती बयार में है ।
जो दीप्त है
निराशा में आशा बनकर
महकता है
कंटको बीच सुमन होकर
बरसता है
सहरा में बादल सा घिरकर
धड़कता है
हममें जीवन बनकर ।

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13 MAR AT 13:19

आपको परिवार सहित शुभ एवं मंगलमय होली की हार्दिक शुभकामनाएं
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
टेसू की लाली से देखो  धरती यह हर्षायी है
सरसों ने भी वसुधा को पीली चूनर पहनायी है ।
बोर भरे आमों पर कोयल कूक कूक कर गाती है
गेहूं की बाली भी देखो स्वर्णिम हो इठलाती है ।
भांति भांति के फूल खिले हैं प्रकृति भी मुस्कायी है
रंग लिये फागुन में देखो फिर से होली आयी है ।

मुरझाये से पेडों पर नव कोंपले उग आयी हैं
फागुनी बयार जैसे यही सन्देशा संग लायी हैं ।
छोडकर पतझड़ को पीछे नयनों में नये स्वपन धर लो
खाली सा जीवन लगता तो प्रेम के कुछ रंग भर लो ।
खोल द्वार देखो बाहर हुरियारों की टोली आई है
रंग लिये फागुन में देखो फिर  से होली आई है।

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1 JAN AT 12:02

नव वर्ष 2025 की आपको परिवार सहित हार्दिक बधाई

नवल वर्ष हो शुभ, मंगल
यश समृद्धि रहे अपार
अपनो के संग खुशियां
मिलें इस वर्ष अपरंपार ।
उमंग भरे यह जीवन में
स्वपन करे सब ही साकार
हमारी तरफ से प्यार, खुशि और अनंत संभावनाओं से भरे इस नववर्ष की बधाई करें स्वीकार ।

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21 NOV 2024 AT 6:59

आओ खोले मन खिड़कियां फिर
रोशनी के लिये
जिससे हटे अंधकार का साम्राज्य
जो स्थायी सा समझ खुदको
जम गया है हर चीज पर ।
शुरू करें संवाद
जिसकी गर्मी से पिंघल सके
रिश्तों पर जमी बर्फ
देख सके इक दूजे की आंखो में
पढ सकें दिल पर लिखे शब्द ।
पढें प्रकृति से पाठ
जो देती है
सबकुछ निस्वार्थ
चले मिल सब साथ
बेहतर करने इस प्यारी दुनिया को ।
कविता मधुर



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31 OCT 2024 AT 15:49


🪔 शुभ दीपावली🪔
🪔💐💐💐💐🌹🌹💐💐💐💐🪔

बने रहें उत्सव यूं ही और कुछ मतवाले
जीवन के हर छण में निश्छल मुस्काने वाले ।

सजें रहे बाजार यूं ही और उनमे आने वाले
बिन स्वार्थ के भी हों कुछ रिश्ते निभाने वाले ।
कविता मधुर
होते रहें प्रकाशित हर मन के अंधियारे कोने
बने रहें कुछ गैरों के पथ में दीप जलाने वाले

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2 AUG 2024 AT 17:05

ख़्वाब कुछ ही बच पाते हैं
हकीकत ही जमीन पर टकराकर
पर जो बचते हैं वो मुकाम बन जाते हैं
आसमां पर छा जाते हैं।

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22 MAY 2024 AT 19:35

सजदे में झुकी मैं ही बुत हो गयी
सोचती थी यही उस दर क्यों गयी ।

लगी अपनी सदा साथ थी जब मेरे
ज़िन्दगी तू बता क्यों ज़ुदा हो गयी ।

पत्थरों से गिला कैसे और क्यों करूं
आइने सा था दिल भूल सी ज्यों गयी ।

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9 APR 2024 AT 13:36

नव संवत्सर की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ।
🌼🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌼

जब गेहूँ व सरसों से भरा हो वसुधा का आँचल
रवि किरणें ले प्रखर तेज जब, छुएं धरा का अन्तस्तल
पतझर बाद नयी कोंपल जब लेती है अंगडाई
तब मानो चैत्र सम्पदा नव संवत्सर रुत है आई ।

कविता मधुर

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