kavita kumari   (kavita kumarihttps://you)
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Joined 15 March 2023


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22 MAR AT 18:25

उन्होंने शाजिश रची हमे बदनाम करने की ,
बड़े तखल्लुस की बात है उनकी शाजिश
नाकामयाब हो गई और हम मश्हूर हो गये।

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21 MAR AT 23:01

मै तप ,ज्ञान ,मोक्ष की भूमि हूँ,
मै सत्य अहिंसा के आविष्कार की भूमि हूँ,
मै याज्ञवल्क्य,बाल्मीकि,मण्डन मिश्र,
माता सीता की भूमि हूँ।
मै मगथ महाजनपद, बिम्विसार ,
चन्द्रगुप्त मौर्य,अशोक महान की भूमि हूँ।
मै आर्यभट्ट,,वात्स्यायन की भूमि हूँ
मै गौतम बुद्ध और महावीर के ज्ञान की भूमि हूँ
मै शेरसाह,गुरु गोविंद की भूमि हूँ
सिचतीं है, देव नदी गंगा मेरे मैदानो को ।
दिये थे मैने नालंदा,विक्रमशिला जैसे धरोहर
बिहार को।
मैने कौटिल्य जैसा राजनितिज्ञ दिया और
दिया प्रथम राष्ट्रपति भी,
प्रथम जनांदोलन और प्रथम सत्याग्रह की भी भूमि हूँ।
हाँ मै बिहार की भूमि हूँ।
मौसम और जलवायु के मार को झेलते हुए
बाढ, भूकंप के हँसते प्रहार को सहते हुए,
मै मेहनत,साहस ,हिम्मत के साथ,
दिनकर की भूमि हूँ।
मै संगीत के सात स्वरो के साथ बिहार की भूमि हूँ।
(कविता की कलम ✍️)

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19 MAR AT 22:42

जो नामुमकिन को मुमकिन करदे ,
चुनौतियो से जो लोहा ले,
धैर्य,साहस,हिम्मत,हौसले के साथ
धरती से अंतरिक्ष को माप
मानव जाति को बता दे असम्भव
कुछ भी नही उस सख्सियत का नाम
सुनिता विलियम्स है।

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19 MAR AT 22:21

पैसे से अमीर होना आम बात है,
जो किरदार से अमीरी झलके
तो खास बात है,

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17 MAR AT 23:05

मै नदी की एक धारा,
वो समंदर बनकर रहता है,
वो चट्टानो सा मौन हृदय,
मै ज्वालामुखी के उद्गार सा,
मेरे आँखो के कोनो मे काजल के बहाने
वो उल्फत ढूंढता रहता है ,
मै उसकी सख्सियत मे
असरार के बहाने ढूँढती
फिरती हूँ।( कविता की कलम ✍️)

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11 MAR AT 22:34

कुदरत कभी नाइंसाफी नही करता,
वो तुम्हारे रोने के धुन को समझ सकता है
तो तुमहारे हँसने के धुन को संगीत के
सात स्वरो मे पिरोने की ताकत रखता है ,
तू हिम्मत,साहस के साथ.
तू सब्र का दामन थामे रख ,
तेरी मेहनत ही तुझे जीत के
रंग मे रंग मे रंग देगी,
तू अपने विश्वास के साथ
कुदरत की अदृश्य शक्ति का ऐतबार
तो कर, --(कविता की कलम ✍️)

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7 MAR AT 23:26

ना दया,न भींख और न आरक्षण चाहिए,
हमे तो सिर्फ अपने हिस्से का अधिकार चाहिए,
समझौते वादी परंपरा से निजात चाहिए,
बेशक करूणा,ममता,प्रेम,दया स्त्रीत्व के
सभी गुणो से परिपूर्ण है हम,
हम जननी, हम जगदम्बा,
हम दुर्गा,हम लक्ष्मी,काली और सरस्वती,
जब सब कुछ हम तो हमे आरक्षण देकर
बराबर तुम कैसे करते है,
हमे तो बस अपना अधिकार चाहिए।
सुनसान सड़क, रात का खौफ
न हो की हम अकेले है ,
जैसे तुम्हे नही होता डर
वैसा अधिकार आज ये कलम चाहत है।
हमे तो बस अपना अधिकार चाहिए
हमे एक दिन का सम्मान नही
अधिकार चाहिए ---कविता की कलम ✍️

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26 FEB AT 23:28

एक घर,एक पुरा समाज,
अपनी पसंदीदा जगह,
अपने नाज,नखरे
वो हंसी ठिठोली
सब कुछ तो छोड़ आये,
एक नए कारवां की खातिर ,
और सब कहते है ,
साहब किया ही क्या है,
कई दशको की यादे ,
अपनी सहेलियाँ ,
सब कुछ तो छोड़ आये ,
फिर भी कहते हो साहब किया ही क्या है
ऐसा सब करते है,
नये सफर मे पुरानी यादे बस याद बनकर
रह जाती है हम महिलाओ के लिये---

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23 FEB AT 23:17

बेशक मगरूर हूं,मजबूर नही,
स्वाभिमान का सौदा नही करती
हम तो सजदा भी अपने ईश्वर
के सामने ही करते है
जिन्होने हमे इस काबिल बनाया
कि हमारा स्वाभिमान ना झुके।

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23 FEB AT 23:04

सीखा है दुनिया से अकेले मे रहना,
और सीख रही हूँ, इसी दुनिया से
चलन आज का ,
ये माना की ठोकरे,मजबूर बनाती है,
हर ठोकर मजबूर नही बनाती
कुछ ठोकरे मजबूत भी बनाती है,
लोगो की परवाह किये बिना,
जिंदगी जीना सिखाती है।

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