kavita jayant Srivastava   (Kavita)
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Joined 21 November 2017


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Joined 21 November 2017

अनजान से मित्र बनने और मित्र बनकर अनजान बन जाने वाले सफर में मिले सभी यात्रियों को यह बताना चाहते हैं कि एक बार मित्र बन जाने के बाद अमित्र नहीं हुआ जा सकता और यह भी सच है कि जो अमित्र हो गया वह कभी मित्र था ही नहीं !

मित्रता एक भाव है विश्वास और प्रेम से भरा हुआ
जहां अविश्वास वितृष्णा और ईर्ष्या नही होती , जिस रिश्ते में अविश्वास,घृणा और ईर्ष्या है वह मित्रता नहीं है, भ्रमजाल से बाहर आ जाइये
और हर किसी को मित्र की श्रेणी में मत गिनिए !

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13 JUL AT 11:34

मोहब्बत की मजबूरियां क्या कहें
उसके हर झूठ पर यकीन करने की
तरफ
मेरा कदम उसके दिखाए रास्ते
के पहले ही आगे बढ़ जाता था
हर बार यही सोचा जो देखा काश वो
एक झूठा सपना हो
जो सुना वो बात झूठी हो
जो महसूस हुआ वो एहसास झूठा हो
सिर्फ मोहब्बत की चाहत में बदले में
भीख भी मिली तो
दिल ने हर बार दिमाग को समझाया
ये बात भी झूठी है
रिश्ते में जब सच ही न बचा हो
दुनिया पर यकीन नही होता
क्योंकि वो एक शख्स झूठा था
जिसे आपने अपनी दुनिया बना रखा था

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जब पिता और माता जीवित न हों
और प्रियजन के नाम पर कोई न हो
ईश्वर में आस्था चुकने लगी हो
परिवार खंडित हो गया हो
जीवन मे सिर्फ सांसें हों
जीवन जैसा कुछ न हो
तब खुद को जिंदा लाश समझ लेना
मेरी तरह ...!

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भादो मन

सावन की हरीतिमा और ठंडक के बाद
उमस भरा भादो अब मानो मेरा प्रतिरूप है
इसकी सीलन भरी दीवारें
मानो मेरा शरीर
कीचड़ भरे रास्ते जीवन की डगर
और उमस से पका हुआ तन मन
इस गन्दे रास्ते पर चल पाने में अक्षम मेरी आत्मा
अब मानो स्वयं के अदृश्य दाह से उकता चुकी है
भादो में जन्मा शरीर इस भांति कष्ट निर्वहन क्यों करता है ?
क्यों राहू और केतू कृत प्रारब्ध को अपने मानसिक स्वास्थ्य से भरता है
ऊपर से चारों ओर सावन की हरियाली दिखती है
किंतु सावन की भरपाई करता है भादो
जलाता है तपाता है निर्जीव पड़ी देह को
चलती फिरती लाश को देख कोई समझ भी न पाता है
बड़ा की कष्टदाई लगता है ये अकथनीय निर्वहन
कुछ इस भांति उलझा है यह मेरा भादो मन

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जिक्र का रिश्ता फिक्र से होता है
जितना ज्यादा जिसका जिक्र है
समझो उतनी उसकी फिक्र है

-कविता

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29 JUN AT 11:46


वाह री मदिरा !
ये कैसा नशा है तुझमे
क्यों पत्नी का अपमान और
प्रेमिका से प्रेम करवाती हो
क्यों गलत और सही का फर्क नही कर पाती हो
क्यों स्त्री को गणिका और
क्यों पुरुष को राक्षस बनाती हो ?
क्यों बनी तुम क्या है तुम्हारा औचित्य !
आखिर क्यों धरा पर पाप और दुख बढ़ाती हो

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मैं खामोश तू फरामोश
मैं सर्द तू जोश
मैं फर्द तू जमा
मैं तन्हा तू समां
मोहब्बत में सब कुछ अलग क्यों होता है
मोहब्बत में सब कुछ अलग क्यों होता है ?

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जब प्यार की दुनिया जल गई
तब वफ़ा करने की आदत खल गयी
समझ गए वो बेइज़्ज़ती औ बदसुलूकी
यूँ जिंदगी की सुखमई शाम ढल गयी

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11 JUN AT 22:59

वो रिश्ता टूट जाता है
जहां निभाने वाला
अकेला पड़ जाता है

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10 JUN AT 20:47

पत्नी खाने में नमक जैसी होती है
नमक के बिना स्वाद नही होता
पर सब्जी के स्वादिष्ट होने का श्रेय
कभी नमक को आज तक नही मिला

नमक को अपनी उपस्थिति दिखाने की
एक दिन हूक उठी , थोड़ा ज्यादा नमक
लोगों को पसंद नही आया
न ही किसी ने खाया ..
नमक को समझना पड़ेगा वह बहुत कुछ जरूर है मगर सब कुछ नही ...
पत्नी की आवश्यकता है पर महत्व नही !
नमक की तरह जरूरत और शौक में अंतर होता है

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