अनजान से मित्र बनने और मित्र बनकर अनजान बन जाने वाले सफर में मिले सभी यात्रियों को यह बताना चाहते हैं कि एक बार मित्र बन जाने के बाद अमित्र नहीं हुआ जा सकता और यह भी सच है कि जो अमित्र हो गया वह कभी मित्र था ही नहीं !
मित्रता एक भाव है विश्वास और प्रेम से भरा हुआ
जहां अविश्वास वितृष्णा और ईर्ष्या नही होती , जिस रिश्ते में अविश्वास,घृणा और ईर्ष्या है वह मित्रता नहीं है, भ्रमजाल से बाहर आ जाइये
और हर किसी को मित्र की श्रेणी में मत गिनिए !-
पहचाने से एहसास हमारे लफ़्ज़ों में
दर्द से वाबस्ता हो ... read more
मोहब्बत की मजबूरियां क्या कहें
उसके हर झूठ पर यकीन करने की
तरफ
मेरा कदम उसके दिखाए रास्ते
के पहले ही आगे बढ़ जाता था
हर बार यही सोचा जो देखा काश वो
एक झूठा सपना हो
जो सुना वो बात झूठी हो
जो महसूस हुआ वो एहसास झूठा हो
सिर्फ मोहब्बत की चाहत में बदले में
भीख भी मिली तो
दिल ने हर बार दिमाग को समझाया
ये बात भी झूठी है
रिश्ते में जब सच ही न बचा हो
दुनिया पर यकीन नही होता
क्योंकि वो एक शख्स झूठा था
जिसे आपने अपनी दुनिया बना रखा था-
जब पिता और माता जीवित न हों
और प्रियजन के नाम पर कोई न हो
ईश्वर में आस्था चुकने लगी हो
परिवार खंडित हो गया हो
जीवन मे सिर्फ सांसें हों
जीवन जैसा कुछ न हो
तब खुद को जिंदा लाश समझ लेना
मेरी तरह ...!-
भादो मन
सावन की हरीतिमा और ठंडक के बाद
उमस भरा भादो अब मानो मेरा प्रतिरूप है
इसकी सीलन भरी दीवारें
मानो मेरा शरीर
कीचड़ भरे रास्ते जीवन की डगर
और उमस से पका हुआ तन मन
इस गन्दे रास्ते पर चल पाने में अक्षम मेरी आत्मा
अब मानो स्वयं के अदृश्य दाह से उकता चुकी है
भादो में जन्मा शरीर इस भांति कष्ट निर्वहन क्यों करता है ?
क्यों राहू और केतू कृत प्रारब्ध को अपने मानसिक स्वास्थ्य से भरता है
ऊपर से चारों ओर सावन की हरियाली दिखती है
किंतु सावन की भरपाई करता है भादो
जलाता है तपाता है निर्जीव पड़ी देह को
चलती फिरती लाश को देख कोई समझ भी न पाता है
बड़ा की कष्टदाई लगता है ये अकथनीय निर्वहन
कुछ इस भांति उलझा है यह मेरा भादो मन-
जिक्र का रिश्ता फिक्र से होता है
जितना ज्यादा जिसका जिक्र है
समझो उतनी उसकी फिक्र है
-कविता-
वाह री मदिरा !
ये कैसा नशा है तुझमे
क्यों पत्नी का अपमान और
प्रेमिका से प्रेम करवाती हो
क्यों गलत और सही का फर्क नही कर पाती हो
क्यों स्त्री को गणिका और
क्यों पुरुष को राक्षस बनाती हो ?
क्यों बनी तुम क्या है तुम्हारा औचित्य !
आखिर क्यों धरा पर पाप और दुख बढ़ाती हो
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मैं खामोश तू फरामोश
मैं सर्द तू जोश
मैं फर्द तू जमा
मैं तन्हा तू समां
मोहब्बत में सब कुछ अलग क्यों होता है
मोहब्बत में सब कुछ अलग क्यों होता है ?-
जब प्यार की दुनिया जल गई
तब वफ़ा करने की आदत खल गयी
समझ गए वो बेइज़्ज़ती औ बदसुलूकी
यूँ जिंदगी की सुखमई शाम ढल गयी-
पत्नी खाने में नमक जैसी होती है
नमक के बिना स्वाद नही होता
पर सब्जी के स्वादिष्ट होने का श्रेय
कभी नमक को आज तक नही मिला
नमक को अपनी उपस्थिति दिखाने की
एक दिन हूक उठी , थोड़ा ज्यादा नमक
लोगों को पसंद नही आया
न ही किसी ने खाया ..
नमक को समझना पड़ेगा वह बहुत कुछ जरूर है मगर सब कुछ नही ...
पत्नी की आवश्यकता है पर महत्व नही !
नमक की तरह जरूरत और शौक में अंतर होता है
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