Kavita Dhama   (कविता DHAMA)
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Joined 15 February 2020


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27 JUN 2022 AT 23:07

बदलता वक़्त , बिखरती आश......


... महादेव _ _ _ एक विश्वास 🙏🌹🌹

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7 JUL 2021 AT 17:22

ज़िंदगी उलझन भरी कश्ती है...
और, संघर्ष उसका मांझी है।

लहरों से डरकर, तट भटकना...
या
लहरों पर अडिग रहकर, तट पाना,

...... यह मांझी पर निर्भर है।।

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9 JUN 2021 AT 17:12

आपकी "मुस्कराहट" मुझे पूरा करती है ऐसे,
...एक कलम को "स्याही" पूरा करती है जैसे।।

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6 JUN 2021 AT 19:37

ज़िंदगी बदलाव में तब्दील हो रही है.....
हर रोज़ एक नई सुबह से, श्याम में तब्दील हो रही है।।
कुटुम्ब को एकल बना रही है.....
.. अपनों से उम्मीद के दामन को छोड़ रही है।।
प्रकृति के स्थान पर कृत्रिमता को स्थान दे रही है,
जीवों की मत्यु तले.. मानव के आशियाने की,
...... होड़ लगाई जा रही है।।
अमन की भूख संसार में मध्य हो रही है।।
मानवीय सोच ही ज़िंदगी में बदलाव तब्दील कर रही है,
.. और ज़िंदगी मानव को चला रही है,
ये झूठी सोच मानव जगत मे,
परिलक्षित होती जा रही है।।





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12 MAY 2021 AT 15:58

तुम्हारी आँखे पढ़कर मैं...
तुम्हारे दिल का हाल जान लेती हूँ,

बस यूँ ही मैं तुम्हे...
नजरों - नजरों मे पहचान लेती हूँ।।

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10 APR 2021 AT 13:46

वों पल में मुझे, मुझसे चुरा ले गया ,
मेरी जान लेकर भी, एक नई ज़िंदगी दे गया ।

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31 MAR 2021 AT 14:19

जैसा सोचोगे वैसा बन जाओगे,
ये मन एक छोटे बच्चे की भाँति है....
इसको जब भी जैसा फूसलाओगे
................... वैसा पाओगे......
तब देखना, आप कठिनाईयों....
मे भी, खुलकर मुस्कुराओगे....।।

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1 JAN 2021 AT 23:15

आज ज़िंदगी ने दोबारा बदलते वक़्त को दोहराया हैं,
छोड़ दो हजार ने, बीस का दामन, इक्कीस के दामन को अपनाया हैं, फ़िर वही समान माह, उसी समान तारीक सहित आया हैं।।
बदलते वक़्त का पता सिर्फ़ बदलते वर्ष ने बतलाया है, जिसके समुद्र से मैने.. सिर्फ़ अनुभव का एक बादल चुराया हैं।।
बदलते वक़्त के व्यावहार से आत्मसात हों, मैंने स्वयं में ये बदलाव पाया है, तेज हवाओं के भय से ना रुकना हैं,
ना थकना हैं.. बस अनुभव के इस बादल से वर्षा कर दूसरों की नीरसता के बाग मे..
मुस्कराहट का कुमुद खिलाना हैं!! 🌹✌️

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23 SEP 2020 AT 12:15

जीना हैं तो उसके लिए जिओ...
जो तुम्हें देखकर जीता हों,
उसके लिए क्या ! जीना...
जिसके ख्यालों मे भी तुम्हारा बसेरा ना हों ।।



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2 SEP 2020 AT 17:22

आख़िर क्यों....
मानव हुआ जाए पाश्चात्य संस्कृति में सराबोर,
कर अपनी संस्कृति पर जानबूझकर आघात कठोर,
कर दिखावे का शंखनाद ह्रदय में...
फिरे डोलता एक छोर से,दुसरे छोर ।।

पंछी-सा उड़ने की मानव मे लगीं हैं, होड़ चहुंओर,
फ़िर क्यों नहीं रखते... उस जैसी साधारण...
जीवन जीने की सुंदर सोच,
छोड़ बैठा हैं अपने लक्ष्य की डोर,
कर अपने पग माया... के पथ की ओर ।।
आख़िर क्यों....



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