कम्ब्खत कलम मे अब और शियहि शेष नहीं
बरना जहन मे समुद्र से भी विशाल लेखनधारा हैं
-
swagat hai
😍😍😍😍😍😵😵😍😍
to chaliye jaante hai mer... read more
जो चंद लफ़्जो मे करे कमाल की लेखनी
जिनका हर एक शब्द, एक कहाँनी वंया करती है
जिनकी लेखन-शैली सबसे अद्भुत ,सबसे निराली
जो ना करते ,किसी खास व्यक्ति/व्यक्तिव की बराई
ना किसी पर तन्ज कसते है
फ़िर भी इनकी लेखन-शैली
पाठ्कों के मन मे एक नयीं जाग्रति उत्पन करती हैं
-
मै समझ रही थी जिसकों Strawberry
😝😝😝😝😝😝😝😋😝😝😝😝😝😝😝😝😝😝😝😝😝😝😝😝
वो असल मे जंगली कंदमुल निकला
मै समझती रही थी जिसको कृषण कन्हया
😆😆😆😆😆😆😆
वो असल मे तारक मैहता का पोपटलाल निकला-
तेरा यूँ बेसरों के तरह देखना
मेरी नजरें परते ही नजरें चुरा लेना
समाने से देख ignore करना !पर
दूर से राह निहारना
तेरा यूँ बेवजह मेरे आस-पास भटकना
बिना वजह के भी class मे आ जाना
बेवजह ही मेरे दोस्तों से बातें करना
मुझे आप कहते-कहते ही यूँ चुप हो जाना
खामोश आखों से यू सब वया कर जाना
सनम बड़ा बेचैन करता है
यूँ तो लोंगों के सामनें तूझे अंदेखा करती हूँ !पर
उपर वालें की कसम जब तू ना दिखे तो सिर्फ तूझें ही ढूंढ़ा करती हूँ
उस सौ के भीड़ मे भी तेरी एक झलक पानें को बेताब रहती हूँ ।
यूँ तो घर आने के वक्त तूझसे मिलने को ना कोई पेहल कर पाती हूँ!पर
तू जो दिख जाय तो दिन मे ईद का चाँद देखने सा महसूस करती हूँ
भलें ही किसी काम मे कितना भी मसरुफ रहूँ !पर
तेरे याद मे हर वक्त बेचैन रहती हूँ-
हुआ आधूनिक समाज
बढ़ी आधूनिक माँग प्रिये
दो वक्त कि रोटी
दो जोरें कपड़े
सर पर सिलन बाली छत
अब नही रही ये पर्याप्त प्रिये
शरिर हुआ नाजूक
वो बाहर कि
धूल-मिट्टी
सूरज कि गर्मी से
काया जलती है
AC , cooler , fridge
कि जरूरत पड़ती है
सड़क पे पड़े कंकड़
पाउँ मे बरे चूभते है
अब दस कदम चलने से ही
सासें आंह-भर घूटते है
तब एक कार की जरुरत लगती है
इस आधिनिक यूग ने
रहन-सहन ,खान-पान ,बोल-चाल
पैहनावे तक का रंग ढंग है बदला
जो English मे गिटर-पिटर बोल ना पाये
उसे दूनिया घृनित रुप से आलोचित करती है
अब तूम ही बताओं
कैसे करू तूम्हारा प्रेम स्वीकार? प्रिये-
लड़कियों को इंसाफ मिलना
अासां नही
इंसाफ के बदलें बहूत कुछ चुकाना पड़ता हैं
अपने परायें बन अपराधि होने का एहसास कराते हैं
किसमत का खेल बता कर
हर जुर्म-अत्याचार को सर झुका के सेहने की तालिम देते हैं
मायके से डोली उठी
ससूराल से ही अर्थी उठें
बरी आसानी सिख ये देते हैं
अब तुम परायी हो
यें कह के सिने पर खंझर से बार करते हैं
वो कहते हैं
आत्मसम्मान की बात ना करना
हर गाली-तंज और उठते हुयें हाथों को
उफ किये बिना ही सहना
बड़े प्यार से कह देतें है बेटा
ये विधी का विधान है
ये तेरा भाग्य है
जलना-कटना ,खून के आसूँ पीना
पर माँ-बाप के सिर को ऊँच्चा रखन
बेटा कोट-कहचरी मे
बात ना जाने देना
पुरखों की इज्जत को बनायें रखना
खूद के सम्मान-आत्मरक्षा करने से
खूद पर हो रहे अत्याचारों को बहिसकृत करने से
क्यूँ ? पिता कि पगड़ी गिर जाती है — % &-
माना कि ;
चाँद सा नूर है तूम मे ,
सूरज सी गरमाट भी
कामदेव सा शरिर हो तूम्हारा
शख्सियत भी बड़ी उच्ची हो
शायद इसलिय स्र्ख़ से भड़े हो तूम
पर प्यारें
भले ही चाँद सा नूर ना हो हम मे
पर अमावस्या सी रात हम भी नही
भले ही सूरज सी गरमाहट ना हो हम मे
पर कमजोर लौह बाली दिया हम भी नही
माना कि रती जैसी सौंदर्य नही है हम में
पर कूरूप-अपंग हम भी नही
यें भी माना कि तूम सा शख्सियत नही है हमारी पर
सड़क की धूल हम भी नही
माना कि स्र्ख़ से लैश हम नही ''पर
बे-गैरत हम भी नही ।।
— % &-
ki aarj kiya hai -ki
tum hmare jajbaton ke sath khelte rahe
aur hum ludo ke gottiyon ki tarh
tumhare ishare par nachte rahe
— % &-
ना कोई धर्म छोटा
ना कोई महजब घृणा ना के पात्र है
धर्म है अनेक पर
सब धर्मो का सार समान है
आज हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईशाई -
कई धर्मो में बाटा है इंशान
परमात्मा ने बनायी
एक धर्म ''इंसानियत''
आज उसे भुला बैठा है इंशान
हिंदू करे हिंदुत्व की रखबली
मुस्लिम करे मोहम्मद की हीफाजात
शिख करे गुरुगोविंद की निगरानी
ईशाई भी करे ईसा-मसीह की रखवाली
पर क्यू?
डरा सहमा ठूठरता
अपने अस्तित्व को बचाता
विलाप करता मारा-मारा फिर रहा है इंसानियत— % &-