Kavi Ritesh  
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Joined 8 September 2019


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Joined 8 September 2019
22 NOV 2023 AT 11:20

नयन में क्रोध और अधरों पे ले मुस्कान आती है
हमारी जान लेने को हमारी जान आती है
देखकर सादगी उसकी सम्भाले भी न सम्भले दिल!
वो जब भी पहनकर पारंपरिक परिधान आती है

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15 AUG 2023 AT 9:12

अनेकता मे एकता की सीख तिरंगा
दिल के मेरे ये सबसे नजदीक तिरंगा
भारत की है ये शान स्वाभिमान हमारा
है आन बान शान का प्रतीक तिरंगा

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3 AUG 2023 AT 23:43

आज एक वर्ष हो गया अपने शहर को छोड़े हुए

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3 AUG 2023 AT 23:42

लेकिन अंतत: इस एक वर्ष में एक ही बात सीखने को मिली है, कुछ पाने के लिए कुछ से दूर होना पड़ता है। अर्थप्रधान इस समाज में अपने आप को सिद्ध करने के लिए आपको अर्थ कमाने की भागमभाग में दौड़ना ही होगा, यही जीवन की सच्चाई है। बस इसी से प्रेरणा लेकर हर रोज तैयार होकर अपने कार्यक्षैत्र को निकल जाता हूं, कुछ नया सीखने, कुछ नया पाने, और आगे बढ़ने।

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3 AUG 2023 AT 23:41

वो शाम और हुआ करती थी, जब दोस्तों के साथ मस्ती, घूमना फिरना होता था। शाम तो अब भी होती है पर अब वो दोस्त नहीं होते है, बस कभी कभी जब वो सब साथ होते है VC से जोड़कर एसा महसूस करवा देते है कि मैं आज भी उन्हीं के साथ हूं।
रात अब भी होती है, देर तक जागकर फोन भी चलाते है, फिर सोचते है काश कोई होता, जो डांटता और समय पर सोने की नसीहत देता, पर अब इस पराए शहर में एसा कोई नहीं है।

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3 AUG 2023 AT 23:40

पर आज भी हर रोज सोने से पहले अपने शहर, परिवार, दोस्तों की याद आए बगैर नहीं रुकती है। उस समय तो रेल्वे स्टेशन छोड़ने आए अपने सभी दोस्तों के सामने अपने आंसुओ पर नियन्त्रण रख लिया था, पर आज उस दिन को याद करके ये पोस्ट लिखते हुए अपने आंसू नहीं रोक पा रहा हू। घर पर माँ के हाथ की बनी हर सब्जी में नखरे दिखाने वाला लड़का, कैन्टीन में बनी हर नापसंद सब्जी को कब चुपचाप खाना सीख गया पता ही नहीं चला। वो सुबह और हुआ करती थी, जब माँ के हाथ की चाय से आंखे खुलती थी, । उठ तो अब भी जाते है पर बस फर्क ये है कि अब माँ के हाथ की वो चाय नहीं होती है।

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3 AUG 2023 AT 23:39

आज एक वर्ष हो गया है अपने शहर को छोड़े हुए। आज ही के दिन रात्री 8.30 बजे निकल प़डा था एक नई मंजिल के लिए, एक अनजान शहर में। जहा कोई दोस्त नहीं था, ना कोई अपना। कितना कुछ बदला है इस एक वर्ष में नए लोगों से मिलना, तरह तरह के लोगों के अंदर छिपे चेहरों को देखना। इन सभी बदलावों में सबसे ज्यादा याद किया है मेने अपने परिवार को, दोस्तों को, और अपने शहर को। जिंदगी की भागमभाग ऐसे हुई की इन 12 माह में मुश्किल से 14 दिवस अपने शहर मे रुका।

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22 APR 2023 AT 9:09

पल भर के लिए तुमको जो पलको में सजालूँ
पल भर में ही कई नए मैं गीत बनालूँ
सबकी हुई है आज ईद चाँद देखकर
जो तुमको देख लू तो मैं भी ईद मनालूँ

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19 JAN 2022 AT 21:01

समझ नही पाया मैं सियासत के इस ताने बाने को
जैसा खुद हूं वैसा ही मैं समझ रहा था जमाने को
सीढ़ी बन जिनके ऊपर उठने का भागीदार बना
वे ही लगे हुए है देखो नीचे मुझे गिराने को

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16 JAN 2022 AT 13:06

नेह की ये डोर टूटने पे जुड़ती न कभी
नेह से पूरित अहसास मत तोड़ना।

राजनीति की भावुकता में बहके कभी भी
रिश्ते हो आम या की खास मत तोड़ना।

ऐसा हो स्वभाव की प्रभाव हर एक पे हो
बौना किरदार आस पास मत छोड़ना

ईश्वर कभी भी आपको नही करेगा माफ
भूलके किसी का विश्वास मत तोड़ना

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