"बलि का बकरा"
बलि का बकरा, कब तक खैर बनाएगा ।
इलेक्सन की ईद मे,ये भी तो कट जाएगा।
कब रखा है पाल कर,किसी मालिक ने घर पर।
आज दाना डाला हैं,कल ये भी तो बिक़ जाएगा।
हैं भूखबड़ी ज्वालामुखी सी,पूँजीवादी आकाओं की।
कितनों को निगला हैं,इस को भी निग़ल जाएगे।
यह दौर है महामारी का,एक दिन कट जाएगा।
बोलना है तो बोलों बेबाक़,ग़ुलाम क्या बोल पाएगा।
मरे बेबस गरीबी के मारे,आमिर क्या इस दौर से बच पाएगा।
लड़ना है तो लड़ो मिलके,हमसे क्या कोई जीत पाएगा।
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