उफ़ भी ना कहा !
बस ख़ामोशी से गुजर जाना था ।
सबसे होती रहती थी, हंस के बातें !
भला हमसे भी क्या शर्माना था ।-
गैर से ग़ैरत भी हुई तो
रास्ता बताते रहे ।।
जिससे हमें इश्क़ हूआ
वो ता उम्र मुझे आजमाते रहे ।।
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वो आकर हर बार....!
इसी फैसले पर थम जाता है ।
सांस लेने की उसके सामने ,
अब हम हिमाकत भी नहीं कर सकते....!
सत्ता में बैठे ,
हुक्मरानों से ही गरीबों का घर जलता है ।
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लगी जब आग तो ,
चिंगारी को बरकरार रखना हमारा काम था ।
वो मेरी रिवायत में ही बुझ गई होती ,
तो ही अच्छा था ।
हुए जब हादसे तो सभी ने यही कहा ,
इसमें भी हुक्मरानों का हाथ था ।-
मेरा ज़मीर भी मुझे ,
अब झंझोरे रहता है ।।
मैं रूकू में रहूं या सजदे में रहूं !
ऐ अब खिलाफ तें जंग का ऐलान करता है ।।
अदा तो होती ही है हर नेमतें !
फिर भी मुझे काफ़िरे मुसलमान कहता है ।।-
किसी ने बहुत ही अदब से पुछा आशिफ !
ना जिने का सबब क्या होता है ?
अगर ना दिखे आंखों में आसूं !
तो दर्द क्या होता है ?
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ज़ख्म पहले से ही ,
नासूर हुए बैठे हैं !
अब दर्द किसे होता हैं ।।-
वो मुख्तलिफ इश्क़ करने का ,
सिर्फ वज़ह ही ढुंढता रहा ।।
अल्फ़ाज़ बयां भी ना हुए ,
कि किसी ने ख़त्म करने की बात कर दी ।।-
हम सितारों की आश लगाए बैठे रहे...!
और चांद जमीं पर आ उतरा...!!
ख़तरा तो था, हमें भी उसके पास जाने से...!
मगर कमबख्त, वो भी हमारा आशिक ही निकला...!!
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कुछ लोग कहा करते हैं....!
अब पैसे की कोई किमत नहीं.....!!
शायद अब वो भुल गए हैं कि.....!
इन्हीं पैसों से वो रुपयों की गिनती कर रहे हैं....!!-