तेरी, मेरी, सबकी,
बस, इतनी है "औकात"...
लकड़ी पर जलकर,
बन जाना.......
एक "मटकी" राख...-
कौन क्या सोचता है??
"फर्क" नहीं अब..
"आजाद" हैं सब............
वे "सोचने" के लिए,
मैं "जीने" के लिए..-
पसंद नहीं आती अब,
इस ज़माने को "सादगी" तेरी.....
यह "बनावट" का ज़माना है,
यहां "मिलावट" ही पुजती है............-
काम रहे, सो याद रहे,
फिर, याद करे ने कोई..
सुख दुख आपही झेलने,
पर, समझे तुम्हें ने कोई..-
किसी ने सुना,
किसी को सुनाया,
कोई खुद सुनाई दे गया..
उनके साथ ने,
साथ का साथ यूं दिया,
कि,
साथ-साथ जुदाई दे गया..-
उनकी जुल्फ़े, उनके झुमके, उनकी पायल, उनकी आवाज़..
इनकी यादों से, उनकी एक आखिरी याद,
आखिर रह गई..
लम्हा, पल, वक़्त, महीने, साल, दिन.. सब गुज़रे..
पर एक आखिरी रात आखिर रह गई..
जो हँसी उनके चेहरे पर थी,
वो हँसी आखिर हमारे चेहरे पर ही रह गई,
यार, उनसे बात करने की, एक आखिरी बात आखिर रह गई..
यार, उनसे बात करने की, एक आखिरी बात आखिर रह गई..
-©✍🏻कौस्तुभ पचौरी ❣️-
एक लंबा "Message" लिखके,
उसे बार-बार "Erase" करना.........
अब,
"अनकही" कहानियों का जन्म,
"Digitally", होता है................-
अच्छा सुनो!
तुम ना, बाल ज़रा बड़े रखा करो,
और कानों में लटकन वाला झुमका पहना करो,
फिर बालों को एक कान में लटकते हुए झुमके के पीछे रखकर,
दूजे कान तरफ, उन्हें कंधे के आगें रखा करो,
ताकि दिखे तुम्हारा झुमका मुझे, और दिखो मुझे,
उस झुमके में तुम.....
अच्छा सुनो!
कान के पीछे एक छोटा सा काला टीका भी लगाया करो,
ताकि लगे ना तुम्हें नज़र मेरी, और बसी रहो मेरी नज़रों में तुम.......
बस ऐसे ही तो बसाया है, तुम्हें मैंने अपनी कल्पनाओं के संसार मे,
क्योंकि अब बस कल्पनाओं में ही तो मिलते हैं,
हम और तुम.................
- ✍🏻 कौस्तुभ पचौरी ❣️-
"सुनवे" वाले बहुत मिले,
"समझवे" वालो मिलो ना "कोऊ"..
अगर! समझते, बे तनिक भी हमकों,
सो, "फूट-फूट" के रोते "दोऊ"..........-
तुमसे इश्क़ करना भी एक वजह है,
तुमसे इश्क़ "ना" करने की वजहों में.......-